Book Title: Nabhakraj Charitra
Author(s): Merutungacharya, Gunsundarvijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 23
________________ प्रकार क्यों ठग लिये जाते हो ? देवद्रव्य की ऐसी बातें सत्य थोड़े ही होती हैं ? इस सब बातों को तो कल्पित ही समझना चाहिए । ऐसी बातों से कौन धोखे में आ सकता है ? छोड़िये इन सब बातों को ! आप किसी भी प्रकार बड़े भाई के पास से हमारी संपत्ति का आधा हिस्सा प्राप्त कर लीजिए । निधान भी आधा प्राप्त कर लीजिए । ऐसे व्यवहार ज्ञानविहीन बड़े भाई के साथ रहा ही कैसे जा सकता हैं ?" सिंह की दुर्बुद्धि में वृद्धि हुई । वह तीन दिन दूराग्रह से भूखा रहा । इसने स्वजनों को भी बड़े भाई से अलग होने की बात बताई । उनका साथ लेकर संपत्ति तथा निधान का आधा हिस्सा उसने प्राप्त कर लिया । भाईयों की संपत्ति का बँटवारा हो गया । इच्छानुसार द्रव्य की प्राप्ति होने पर छोटा भाई सिंह तत्काल तो अत्यंत प्रसन्न हो गया । इसके बाद न्यायप्रिय समुद्र ने शत्रुजय तीर्थाधिराज की यात्रा की तैयारी की । नाग कौटुंबिक के आत्मिक लाभ के हेतु अर्ध निधान तीर्थ पर खर्च करने के लिए वह लालायित था । जैसे ही वह यात्रा के लिए निकला कि उसके छोटे भाई सिंह की दुर्बुद्धि ने एक और दाव खेला । राजा के पास पहुँचकर वह बोला, "राजन् ! मेरे भाई को इस प्रकार खोदते हुए भूमि में से निधान प्राप्त हुआ है । यात्रा के बहाने गुनाहित मानसवाला वह निधान को लेकर नगर से बाहर जा रहा है, इसमें मुझे तनिक भी आप दोषी न समझें ।" तत्काल राजा ने समुद्र को अपने समक्ष बुलवाया । उसने संपूर्ण सत्य हकीकत बताई और देवद्रव्य तथा तद्विषयक लिखित ताम्रपत्र भी राजा को बताये । राजा को समुद्र का यथास्थित वक्तव्य स्पष्ट दिखाई दिया । सुंदर न्यायधर्म के ज्ञाता राजा ने समुद्र का सत्कार कर के यात्रा के लिए उसे अनुमति दी । इससे उसका उत्साह दुगुना हो गया । दूसरा मुहूर्त निकलवा कर वह सपरिवार शीघ्र ही यात्रा के लिए रवाना हुआ । मानों वह स्मरण कर रहा था - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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