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मुंहता नैणसीरी ख्यात .... वात १ वीठू झाझण' कही.... मांडवरा पातसाहरो मेवाड़ जेजियो लागतो । सु जद रांणो रायमल राज करै । सु रायमल स्याँणो' ठाकुर हुवो, सु क्यूंही' बोलतो नहीं। रायमलरै बेटो प्रथीराज हुवो । सु प्रथीराज सिकार रमण गयो थो। सु सिकार रमतां एक लुगाई घड़ो भरियां जावती थी, तिणरै सोकलारी लगाई। सु गोढवाड़रो लोक अोछो-बोलो' तो हुवै छै । तरै उण लुगाई कह्यो-"कंवरजी मारो घड़ो कांई फोडियो । इसड़ा' तरवारिया' छो, तो मेवाड़ जेजियो लागै छै सु परो छोड़ावो' । तितरै पाखतीरा" ऊभा था।2 तिणां उणनूं डराई । कह्यो-"तूं बोल मती ।" नै प्रथीराज बोलियो-"क्यूं हो ठाकरां! आ कांई कहै छै ?" किणहेक कह्यो, आ यूं कहै छै-"आखी मेवाडनूं मांडवरा पातसाहरो जेजियो लागै छै, सु कंवरजी छुड़ावो नी क्यूं ? 14" तरै आप कह्यो-"जेजियो ले छै सु कुण छै ?" तिण कह्यो"तिके पाटण कोट मांहे हीज रहै छै । वे दीवांणरा चाकर न छै । वे मांडवरा पातसाहरा चाकर छै । जेजियो उघरावै15 छै ।" तद दीवांण कुंभळमेर रहता। नै कंवर आ वात सुण नै सिकार रम पाछो
1 झाझण नामक वोठू जातिका चारण। 2 जजिया नामक एक कर जो बादशाही समयमें हिंदुओंसे लिया जाता था। 3 शान्त स्वभावका । 4 कुछ भी। 5 शस्त्रका अग्रभाग, चूंकला, नोक । (यह शब्द 'चूंकलो' वा 'चूंकली' होना चाहिये । मारवाड़ में 'चूंक' नोकदार कोलको कहते हैं। गाड़ी में जुते हुए बैलों आदिको चलानेके लिये लकड़ीके अग्रभागमें पैनी चूंक लगा कर बनाई हुई 'चूंकली' काममें लाई जाती है, जिसे 'आर' वा 'परांणी' भी कहते हैं। गोढ़वाड़में 'च' 'छ' आदि वर्णों का उच्चारण 'स' की भांति ही किया जाता है अतः यहाँ 'चूकलो' वा चोकलोके. स्थान 'सोकलो' लिखा गया है। 6 अपशब्द बोलने वाले । (प्रसंगमें तो स्त्रीकी ओरसे ओछा बोलना नहीं प्रतीत होता। इसके विरुद्ध प्रियोराजके ओछे व्यवहार और प्रजाकी एक स्त्रीके साथ दुर्व्यवहार और अपमानका साहसपूर्ण, समुचित और प्रेरणादायक कटाक्षमय उत्तर है, जो वास्तविक और समयोचित है। यही नहीं, जो उस समयके शासकगणोंको कर्तव्य-हीनता और निरंकुशता एवं दूसरी ओर सर्वसाधारणमें देश और जातिके अपमानके अनुभवका परिचायक है।)7 ऐसे । 8 तलवार चलाने वाले । 9 हंटवा दे । 10 इतनेमें । 11 पास वाले । 12 खड़े थे। 13 समस्त । 14 उसको कुंवरजी क्यों नहीं हटवाते ? 15 जजिया वसूल करते हैं ।