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मुंहता नैणसीरी ख्यात
संघ' छै, तिण लोपतां' चहुवांण सदा मरै छै । स्यांम नदीरै ढाह चहुवांण कांम आयांरी छतरियां छे । वागड़रै कांठे चहुवांण भड़किंवाड़' रजपूत वेढीला' छै । सु धणियांरै नै चहुवांणारै रस थोड़ा दिन हुवै छै । तद मारवाड़रा रजपूतांनू वडा–वडा पटा देनै सदा वागड़रै राजथांन वास राखँ है । राठोड़े उठे बडा बडा प्रवाड़ा किया है । तिण राठोड़ारो उठे वडो नांव छै । बड़ो इतवाद छै । वांसवाहळार सींवरी 10 विगत
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सर्व गांव १७५०
डूंगरपुरसूं सींव पछिम दिसा देवळियो लागे । राजपीपळो निजीक छै ।
वांसवाह गांव १७५० तो कदीम छै इणांरे । तठा पर्छ इतरी धरती बांसवाहळारा धणियां वळे" नवी खाटी 2 छै ।
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आ वात चारण-भूलै रुद्रदास भांगरे, सांईया झूला पोतरे कहो । संमत १७१९ रा चैत मांहे । मुंहता नैणसी आगे जैतारण में 23 भोमियांरा मार लिया, भोग पडिया 24 गांव १४० सीरोहीरा भीलांरा मेवासरा तथा देवड़ांरा, महीरे पैलै कांठे " कोम ६ उगवण - दिसा 16 | गांव १२ खुंधुरा उगवणरा 17 खळ - महीड़ांरा गांव १२ पीढी मगरा-महीड़ांरा" ।
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गैहलोतां चोबीस साख भिळे
१ गेहलोत, २ सीसोदिया, ३ आहाड़ा, ४ पीपाड़ा, ५ हुल, मांगळिया, ७ आसायच, ८ कैलवा, ६ मगरोपा, १० गोधा,
1 निकट | 2 जिसको लांघने पर 13 स्मारक | 4 सीमा पर | 5 रक्षक-शूरवीर, हाररक्षण | 6 युद्ध-रसिक 7 स्वामी और चौहानोंके परस्पर प्रीति थोड़े दिन हो निभती है । 8 युद्ध, शुद्ध विजयकी कीति । 2 स्वाति | 10 नीमा की। 11 और पुन: । 12 प्राप्त को है। 13 हा भांपके पुत्र और सासूला के पोते झूले चारा द्रदासने वि० सं० १७१६ के पत्र मुना नंगीको जैनारन में कही। 14 निम्न प्रकार गांव भांमियोंके थे जिनको ठोक कर अपने अधिकार में ले लिये और उनको भोग में (एक प्रकारकी कर वसूली प्रथा ) दान दिये। 15 महीनदीके उस किनारे पर 16 पूर्व दिशा में 17 पूर्व दिशाको ओर | 18 एक बाद 19 पीढीके नगरा मोड़ोंके ।