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मुंहता नैणसोरी ख्यात गढ़में रहतां हुवा था । पछै सुरजनरो वळ छूटो । तरै कछवाहै भगवंतदाससूं वात करायन संमत १६२५, चैत सुद ६ पातसाहतूं मिळियो । इतरी वातरो कौल कियो-"हू रांणारी दुहाई खाईस'। रांणा ऊपर विदा नहीं हुवां।" गढ़ पातसाहनूं दियो। सुरजन पातसाहतूं आय मिळियो । परगना ४ चरणां ७ वांणारसी दिसला ... दिया। पातसाह आगर जायनै सीसोदियो पतो जगावत, रावत जैमल वीरमदेोत अागरारी पोळ हाथियां चढ़ाय मांडिया'। सुरजननूं कूकररी भांत मंडायो । तरै सुरजन गाढ़ो लाजियो । पछै वांणारसी गयो । उठे सुरजनरा कराया मोहळ' छै । सु सुरजनरो छोटो बेटो थो, पातसाहरै पावै रह्यो। नै बडो बेटो दूदो रिणथंभोर थो हीज । रांणा उदैसिंघ कनै गयो । रांण क्यु रोजीनो कर दीनो । पछै सुरजन वेगो हीज मूंवो । तरै पातसाह टीको दे नै बूंदी भोजनूं दीवी । दूदै बूंदी थी ग्रासवेध मांडियो' । सासतो धुंकळ करै'। धरती वसण दै . नहीं । वेळा १० आगरै अंवखास मांहै प्राय भोजतूं मामलो कियो''। तद रतन दूदा कनै रहतो: पछै दूदानूं विस हुवो"। पछै भोज बूदी आयो । खराब हुई धरती भौज वसाई । धरती दिन-दिन रस , . पड़ती गई।
I मैं शपथ राणाकी उठाऊंगा। 2 राणाके ऊपर चढ़ाई करके नहीं जाऊंगा। 3 तरफके। 4 पत्ता और जैमल बड़े वीर थे । चित्तौड़में बड़ी वीरतासे लड़कर काम आये इरा लिये वादशाह अकबरने प्रसन्न होकर आगरेके किलेके द्वार पर इन दोनोंके चित्र हाथी पर बैठाकर चित्रित करदाये। तभीसे यह रिवाज राजमहलों और मंदिरों यादिके द्वारों पर इनके चित्र मॅडवानेका चालू हुआ। 5 अपने हाथसे रणथंभोरका किला सुपुर्द कर देनेके कारण सुरजनका चित्र कुत्तेकी भांति बनवाया । 6 खूब लज्जित हुआ। 7 महल । 8 राणाने दैनिक वेतन नियत कर दिया। 9 दूदेने बूंदीके साथ (कर-वसूलीके सम्बन्ध में) लूट-खसोट करना शुरू कर दिया। 10 निरन्तर उत्पात मचाता रहता है। II दस वार ... आगराके ग्राम और खास.दरवारमें आकर भोजसे वखेड़ा किया। 12 दूदा विप देकर मार दिया गया। 13 दिन प्रतिदिन भूमि वसने लगी।