Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 345
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात जगदेवरो परवार, आंक १६ २० डाभ रिष। तिणरा पोतरा आगर नजीक पंवार ' । २० गूंगा । जगदेव माथो दियां पछै बेटा हुआ 2 तिकै । २० काबा | रांमसेण तथा द्वारका कांनी " । २० गैहलड़ो। कहै छै पैहली गैहलड़ारी ठाकुराई खारी-खाबड़ हुती* । भरिषरी औलाद, प्रांक २० २१ धोम रिष' । २२ धरमदेव राजा, किराडू - [ ३३७ ू धणी । २३ धांधू । २२ धरणी वराह, किराड़ धरणी । २३ बाहड़ | तिणरै घरै अछरा थी । अपछरारै पेटरो । २४ सोढ़ो । २४ सांखलो । २२ उपळराई किराड़ छोड़ ओसियां वसियो । सचिवाय प्रसन हुइ माल बतायो । ओसियां में देहरो करायो' । वात पवारांरी सोढा, सांखला पंवार मिळे । पहली इणांरो दादो धरणीवराह, बाहड़मेर जूनो किराड़ कहीजे, तिणरो धणी हुतो' । तिरै नवै कोट मारवाड़रा हुता" । तिरै बेटो बाहड़ हुवो । तिणसूं'' आ धरती छूटी । एक वार बाहड़ रायधणपुर कनै" गांव झांझमो तठै जाय रह्यो । पछै बाहड़रो बेटो सोढो तो सूंमरां कनै गयो; तिणनूं 10 12 I डाभ ऋषि जिनके पोते ग्रागराके पासमें रहने वाले पँवार हैं । 2, 3, 4 जगदेवके सिर देनेके बाद जो बेटे हुए उनमें एक गूंगा, दूसरा कावा, जिसके वंशज रामसेन तथा द्वारकाकी ओर हैं और गैहलड़ो, जिसके वंशजोंके संबंध में कहा जाता है कि पहिले इनकी ठकुराई खारी-खाबड़में थी । 5 धोम ऋषि । 6 वाहड़ जिसके घरमें ग्रप्सरा थी और उसके पेटसे सोढ़ा और सांखला हुए। 7 उपलराय किराड़ को छोड़ कर श्रोतियांमें जा बसा, सचिवाय माताने प्रसन्न होकर उसे धन बताया और उसने ओसियांमें मंदिर बनवाया | 8 सोढा और सांखला दोनों शाखायें पँवारोंसे मिलती हैं । 9 पहले इनका दादा वरणीवराह, जो श्रव जूना बाड़मेर और किराड़ कहा जाता है, उसका स्वामी था । 10 जिसके अधिकारमें मारवाड़के नौ हो कोट थे । 11 उससे 1 12 पास | 2

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