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पडित हीरानन्द, जगजीवन सिंघवी, रत्नपाल, अनूपराम, दामोदर, माधोदास, हीरानन्द द्वितीय, तिलोकचन्द, विशनदास, प्रतापमल्ल मोहनदास, हृदयराम एव त्रिलोकचन्द सक्रिय सदस्य थे तथा सभी शास्त्र-स्वाध्याय एव धार्मिक चर्चा करते थे । उस समय देश मे शाहजहा का शासन था और चारो ओर सुख शान्ति थी । उस सैली मे खण्डेलवाल, अग्रवाल एव दिगम्बर ओसवाल तीनो ही जातियो के श्रावक थे । पडित खड्गसेन खण्डेलवाल जाति के श्रावक थे तथा पापडीवाल उनका गोत्र था ।
पजाब के अन्य नगरो मे भी ग्रन्थो की रचना हुई तथा कितने ही ग्रन्थो की प्रतिलिपिया की गई जो आज भी राजस्थान, देहली, पंजाब एवं हरियाणा प्रदेश के शास्त्र भण्डारो मे संग्रहीत है और अपने को प्रकाशित देखने की प्रतीक्षा मे है । मुलतान प्रदेश
मुलतान का प्राचीन नाम मूलस्थानपुर था । महाभारत रामायण एवं अन्य प्राचीन ग्रन्थो मे इनका 'मालव' के नाम से उल्लेख किया गया है तथा बादशाह सिकन्दर के इतिहास लेखको ने इसे "मल्लियो की भूमि" लिखा है । जैन ग्रन्थो में इसको 'मूलत्राण' के नाम से सम्बोधित किया गया है। पुराणों के अनुसार नरसिंहावतार इसी नगर मे हुआ था जिसने प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को मारा था । यहा के पुराने किले में भारत विभाजन के पूर्व नरसिहदेव का मन्दिर था जिसे प्रहलादपुरी कहा जाता था । मुलतान से 50 मील दूर 'सुलीमान पर्वत' का एक भाग है । कहते है वही से प्रहलाद को नीचे फेक दिया गया था । मुलतान से 4 मील दक्षिण मे एक कुण्ड है जिसे श्रीकृष्णजी के पुत्र साम्ब ने बनवाया था । जिसे देवताओ का वरदान प्राप्त था तथा जिसके जल से कोढ को बीमारी दूर होती थी । इस कुण्ड का नाम सूरजकुण्ड है जो तीर्थ के रूप मे पूजित था । ह्वेनसाग जब मुलतान गया था तो वहा एक सूर्य मन्दिर था जिसमे उसने भगवान की सोने की प्रतिमा के दर्शन किये थे । वह प्रतिमा बहुमूल्य पदार्थों से निर्मित थी । उसमे अलौकिक शक्ति थी तथा उसके गुण दूर-दूर तक फैल गये थे । वहा पर स्त्रिया निरन्तर बारी-बारी से गाया - बजाया करती थी । समस्त
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1. पंडित होरानन्द प्रवोण, चौदह विद्या मे लवलीन |
संघवो जगजीवन गुणखाण, सकल शास्त्र मय अरथ सुजाण रत्नपाल ज्ञाता बुधवत, हिरदे ज्ञान कला गणवत । अनुपराय अनूपम रूप, बाल पणो जिम मोहे भूप । दामोदर दंसण गुण लीन, माधोदास मधुर प्रवीण । होरानन्द हिरदे परगास, तिलोकचन्द तहा ज्ञान विलास । विषणदास बुद्धि तीक्षण सरी प्रतापमल्ल पूरण मतिधरी । मोहनदास महागुणलीन, हसराज जि हिरदे प्रवीन । कुन्दन कनक नारायणदास, ज्ञान क्ला आगम परकास । पाढे हिरदे पूजा करे, हिरदे हरष सेव चित धरे हृदय राम भो जग हितकार, सेवा करें सुजिन गुणधार । ए सब ज्ञाता अतिगुणवत, जिन गुण सुणै महाविकसत । सब श्रावक अति ही गुणवत, सुणै ग्रन्थ पावै विरतत ॥
- त्रिलोक दर्पण प्रशस्ति
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे