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इसी प्रकार सन् 1930 मे क्वेटा, बलूचिस्तान मे भूकम्प आया था तव आप उन्ही दिनो वहा पर व्यवसाय करते थे और सारा परिवार आपके साथ रहता था। भूकम्प के समय जहा सारा क्वेटा तहस-नहस हो गया और परिवार के परिवार मौत के मुह मे चले गरे किन्तु आपके अतिरिक्त पारवार के एक बच्चे को भी चोट तक नहीं लगी। आपको अवश्य चोट लगो फिन्तु फिर भो नमोकार मन्त्र का जाप सावधानी पूर्वक करते रहे। आपने अपने लडके से कहा नुकसान जो हुआ सो हुआ मै मुलतान से स्वाध्याय के लिये मोक्षमार्ग प्रकाशक हस्तलिखित ग्रन्य लाया था उसे किसी तरह से अवश्य ढु ढवा लेना । ऐसा कहते ही चन्द मिनटो मे भूकम्प का दूसरा झटका लगते ही मकान का वचा हुआ भाग भी आ गिरा और वह ग्रन्थ चौको सहित आपके सामने आ गया। क्वेटा मे ही सात दिन की बीमारी के बाद आपका देहान्त हो गया । आपके जीवन में कितनी हो ऐसी घटनाये हैं जो णमोकार मन्त्र के प्रति श्रद्धा एव प्रेरणा पैदा करती है । आप अपने पीछे श्री मानकचन्द एवं श्री जयकुमार दो लडके छोड गये ।
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000 श्री नेमीचन्दजी बगवानी
श्री नेमीचन्दजी बगवानी श्रीराजाराम के सुपुत्र थे तथा अपने पिता के समान वे भी समाज के कर्मठ कार्यकर्ता थे। अपने व्यापार के अतिरिक्त जितना भी उन्हे समय मिलता वह सब समाज सेवा मे व्यतीत करते थे। जैन धर्म के प्रचार प्रसार की उनकी तीव्र उत्कण्ठा थी। वे अच्छे कार्यकर्ता थे।
आपने मुलतान मे दस वर्ष के बच्चो से लेकर बीस वर्ष के युवको तक की दो भजन मडिलिया बनायी तथा मण्डली के सभी सदस्यो को गाने एव
बजाने की शिक्षा दिलवाई। कुछ ही वो मे इन सगीत श्रा नेमीचन्द जी बगवानी मण्डलियो ने सारे पजाव मे ख्याति प्राप्त की। श्री नेमीचन्दजी इन मण्डलियो के प्रमुख थे। इसलिये जहा से उन्हे बुलावा आता वे सबको माय लेकर सहर्ष जाते और संगीत के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार प्रसार करते । इन भजन मण्डलियो ने अमृतसर, लाहौर, सहारनपुर, फिरोजपुर, शिम्ला, देहली पानीपत आदि स्थानो मे कार्यक्रम देकर अपनी सगीत निपुणता की छाप छोडी थी।
___मुलतान के मन्दिर की वे पूरी देखभाल करते थे तथा उसे नवीनतम रूप देने में उनका पूरा सहयोग रहा था । आपके एकमात्र पुत्र श्री कन्हैयालाल जी है । आपका स्वर्गवान सन् 1947 से पूर्व हो गया।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलाक में