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ही अध्यात्म रुचि वाली रही है। उक्त नाटक समयसार की प्रतिलिपि खरतरगच्छ के श्वेताम्बर खेमजी के गुरु भाई रूपचन्दजी से कराई गई। यह प्रतिलिपि डेरागाजीखान मे ही की गई थी। इसकी प्रतिलिपि कराने वाले नयनानन्द श्रावक थे।
श्रीमती अमोलका वाई मूलतान की कवियत्री, भक्त एव विदूपी महिला थी। उन्होंने वैराग्य आध्यात्मिक एव अर्हद भक्ति के अनेक पद लिखे हैं, उनका डेरागाजीखान से भी अच्छा सम्बन्ध था, इसलिये उन्होने अपने पदो मे "सखी डेरे दिगम्बर सैली मे मगल" लिखा है।
इससे ज्ञात होता है कि डेरागाजीखान मे भी सैली थी जो आध्यात्मिक चर्चा भक्ति गीत एव नृत्य आदि के कार्यक्रमो से धर्म प्रभावना करती रहती थी। अमोलका वाई का समय करीब 200 वर्ष पूर्ण का है जिनका विस्तृत परिचय पहिले दिया जा चुका है।
इसी प्रकार सवत् 1897 की लिखी गई पदस्तोत्र सग्रह की एक पाण्डुलिपि शास्त्र भण्डार में भी उपलब्ध है। इसकी प्रतिलिपि डेरागाजीखान मे हई थी। पहिले इसकी प्रति श्रावक मोतीलाल के सुपुत्र रूपचन्द एव उसके छोटे भाई प्रेमा के पटनार्थ लिखी गई थी। इसके पश्चात् श्रीमती रूपा बगवाणी ने अपने वाचन के लिये डेरागाजीखान मे उसकी प्रतिलिपि कराई थी।
संवत रस खंड मुलि रासि माग कसन सुखकार । तिथि वारसि रविवार सुभ मूल नख्यत्र उदार । ता दिन सम्पूरण लिख्यो नाटक शास्त्र नवीन । बाचत ही सूख सपजै समूझे जिके प्रवीन ॥ खरतरगच्छ खिति मे प्रसिद्ध, भट्टारक भल सामि । श्वेताम्बर श्री खेमजी, निरमल वारणी भाख । तसु गुरु भाई रूपचन्द विनै घर अभिधान । प्रीतिधरी पोथी लिखी दिन दिन बघतै वान । नगर नित्य बधती सदा गढ गढ मोलि पवित्र । चहल पहल नित चौपटे देख्या हरष चित । डेरागाजीखान है सुवस सजल सुख धान । चातुर्मास करी चाह सौ दिन प्रति वधतै वान । संवत 1897 मिती माह सुद 12 दिने सागर चन्द सरझारवाय वाचनाचार्य श्री श्री भवन विशालगणि पं. प्रवरगणि श्री सुखहेमजी गाठी पं. प्र. 108 श्री हरचन्दजी गाठी तत् शिष्य पं. श्री कुशालदत्तजी तत् शिष्य लघु पं. गिरधारी लिखतु । श्रावक मोतीलाल तत्पुत्र रूपचन्द लघु मेमा पठनार्थ शुभ भवतु । रूपा वेगवानी वाचनार्थ लिखवाई पोथी श्री देहरागाजीखा मध्ये ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में