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न दिगम्बर जैन समाज
जयपुर मे आ जाने के पश्चात् समाज के सभी बन्धु अपनी-अपनी स्थिति अनुसार जिन्हे जैसे-जैसे भी मकान किराये पर मिल सके रहने लगे और अपने जीवन निर्वाह के लिए व्यवसाय आदि पुनर्स्थापन करने मे लग गये। सभी भाई व्यापारी तो थे ही पुरुपार्थ इन लोगो की जीवनचर्या मे ही है इसलिए प्राय. सभी बन्धुओ ने दुकाने आदि लेली उनमे से बहुत से तो बडी चौपड के पास कटला पुरोहितजी, जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू वाजार, चाँदपोल बाजार आदि मे दुकाने लेकर अपना-अपना व्यवसाय करने लगे और अपने पुरुषार्थ से व्यवसाय को इतना बढाया कि अब जयपुर मे जनरल मर्चेन्ट्स, कलर एण्ड केमिकल्स आदि व्यापार मे इन लोगो का एकाधिकार है।
जयपुर में विस्थापितो के लिए आवासीय योजनाएं
कुछ समय बाद भारत सरकार ने विस्थापितो के पुनर्वास हेतु कई योजनाए बसाई , जिसके अन्तर्गत राजस्थान सरकार ने भी सन् 1949 मे जयपुर मे आदर्शनगर बसाने की योजना तैयार की, जिसमे विभिन्न गृह निर्माण सहकारी समितियो द्वारा मकान बनाकर देने की योजना बनी।
पजाव रिहीविलीटेशन कोआपरेटिव सोसाइटी जिसके उपाध्यक्ष श्रीमान कवरभानजी थे, उन्होने मुलतान डेरागाजीखान से आये जैन बन्धुओ को भी आग्रह पूर्वक प्लाल लेने को कहा और कई साधर्मी भाईयो को प्लाट दिलवाये भी।
___ सन् 1951 मे आदर्शनगर मे श्रीमान कवरभान जी, श्री खडाराम जी, श्री राजारामजी आदि कई जैन बन्धुओ के मकान तैयार हो गये किन्तु समस्या थी वहाँ जाकर रहने से नित्य धर्म साधन की, अस्तु श्री कवरभानजी ने अपने प्लाट के एक कमरे मे चैत्यालय की स्थापना की, जिसमे मुलतान से लायी गई जिन प्रतिमाओ मे से श्री 1008 भगवान चन्द्रप्रभु एव श्री नेमीनाथ की दो मूर्तिया बडे मन्दिर से लाकर विराजमान की गई जिससे आदर्शनगर मे आकर बसने वाले साधर्मी भाइयो के देव दर्शन आदि समस्या का तत्कालीन समाधान हो गया और कई महानुभाव आदर्शनगर मे आकर रहने लगे।
मन्दिर निर्माण हेतु भूमि की मांग
सरकार के सामने माग रखी गई कि बडे दुस्तर प्रयास पूर्वक पाकिस्तान से लाये गये अपने आराध्य देव (प्रतिमाए। एव बहुमूल्य प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियो को सुव्यवस्थित एव सुरक्षित विराजमान करने तथा नित्य धर्म साधन हेतु मन्दिर बनाने के लिये भमि दी जावे ।
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक ने
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