Book Title: Multan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Multan Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 225
________________ आपने सम्मेद शिखर मे हुई पच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पर भगवान महावीर की एक मनोज्ञ प्रतिमा प्रतिष्ठित कराकर मुलतान लाये थे । सन् 1935 मे समाज ने सात दिवसीय वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव बडे स्तर पर बगीचे मे कराया था। उस समय फिरोजपुर आदि से विशाल रथ मगवाया था। उस उत्सव को सफल बनाने मे आप अथवा आपके परिवार ने प्रमुख योगदान दिया । आपने अपने रग के व्यवसाय मे बहुत उन्नति की । पजाव मे रग के प्रमुख व्यापारियो मे माने जाने लगे और उसमे आपने बहुत द्रव्य उपार्जन भी किया। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती ईश्वरी वाई था। आपके श्रीनिवास, शकरलाल, प्रेमचन्द, पदमकुमार, राजकुमार एव सुभाष कुमार छ पुत्र है। मुलतान मे आपकी फर्म का नाम-सुखानन्द शंकरलाल जैन था । सन् 1945 को मुलतान मे हृदयगति रुक जाने से आपका असामयिक निधन हो गया। श्री सुखानन्दजी के पुत्र श्री निवासजी गोलेछा-वम्बई आपका जन्म 15 अगस्त 1918, श्री सुखानन्दजी के घर मुलतान मे हुआ था। आप प्रारम्भ से ही कर्मठ कार्यकर्त्ता, अच्छे व्यवसायी और धर्मप्रेमी महानुभाव है । पाकिस्तान बनने के बाद कुछ समय तक दिल्ली रहे, बाद मे बम्बई जाकर व्यवसाय करने लगे । जयपुर से इतनी दूर रहते हुए भी दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर के साथ आपका विशेष प्रेम है । आपके उत्साह का ही यह परिणाम है कि आपके परिवार ने मन्दिर मे मुख्य वेदी का निर्माण कराया है और समय-समय पर आप यथा शक्ति तन, मन, धन का सहयोग देकर मन्दिर के निर्माण कार्य को पूरा करने मे सक्रिय भाग लिया है। मन्दिर मे खटकने वाले शिखरो के अभाव की कमी को पूरा करने के लिये आपने बड़े उत्साह एव उल्लास के साथ तीन शिखरो मे से एक शिखर बनवाने की स्वीकृति देकर मन्दिर की बहुत बडी कमी को पूरा करने मे सहयोग दिया है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कमला रानी है जो धर्मज्ञा एव विदुपी है । आपके सतीशकुमार, विपिनकुमार दो पुत्र एव तीन पुत्रिया है। व्यवसाय-श्रीनिवास एण्ड कम्पनी एव मयूर ड्राइकेम कार्पोरेशन, 47 दरिया स्थान स्ट्रीट वडगादी, बम्बई-3 181 • मुनसान दिशाबर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257