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भवन बना है, जिसमे तीन ओर हरे कांच की खिडकिया ही खिडकिया है, जिससे शीतल एव सुहावनी पवन हर समय आती रहती है इसलिये पखे आदि कृत्रिम हवा की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती। यहा नित्य नियमित रूप से प्रात शास्त्र सभा होती है, जिसमे स्थानीय एव बाहर से पधारे हए विद्वानो के प्रवचन होते है । फलस्वरूप महिलाए एव पुरुष वर्ग सदैव तत्व ज्ञान अजित करते हैं। यह स्वाध्याय मन्दिर श्रीमान स्वर्गीय श्री आसानन्दजी सिंगवी की इच्छानुसार उनके भाई श्री खशीरामजी आदि (फर्म मोतीराम कवरभान) ने बनवाया है तथा मन्दिर की दीवार के बाहर की ओर सगमरमर श्री पवनकुमारजी सुपुत्र श्री रिखबदामजी वगवाणी दिल्ली के आर्थिक सहयोग से लगाया गया है, और मन्दिर की बाउ ड्री का विशाल सगमरमर का दरवाजा (गेट) श्री माधोदासजी एव उनके लघु भ्राता श्री बलभद्र कुमारजी सिगवी ने बनवाया है। इस प्रकार इस विशाल मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पूर्ण मुलतान दिगम्बर जैन समाज के सयुक्त आर्थिक सहयोग से अथवा मन्दिर मे विभिन्न स्थानो के लिये विभिन्न व्यक्तियो द्वारा दिये गये आर्थिक सहयोग से हो सका है।
वेदी मण्डप के दोनो ओर निजी रूप मे स्वाध्याय करने के दो कमरे हैं जिनमे पश्चिम की ओर के कमरे मे महिलाऐ एव पूर्व की ओर के कमरे मे पुरुष वर्ग बैठ कर स्वाध्याय, सामायिक व जाप आदि करते है।
इन्ही कमरो के ऊपर दो कमरे और बने है जिनमे कि समय समय पर आये हुए त्यागियो एव वैरागियो के ठहराने की समुचित व्यवस्था है ।
नांचे सभा भवन के बाहर उत्तर मे 20x40 फुट का एक सु दर बरामदा है, जिसके ऊपर स्वाध्याय मन्दिर वना है।
इस मन्दिर का बाहरी सामने का भाग अति कलात्मक एव आकर्षक है, जिसके पर स्वाध्याय मन्दिर वना है। उसमे बने तीन शिखर मानो रत्नत्रय (सम्यकदर्शन, सम्यान एव सम्यक चारित्र) प्राप्ति का स्थान जिन मन्दिर को दर्शाने के द्योतक हैं।
यह मन्दिर वाह्य एव अन्दर (दोनो ओर) एवं समस्त फर्श सीढिया आदि सम्पूर्ण संगमरमर के पत्थर से निर्मित, अति संदर एक आकर्षक है। पैसे तो जयपुर मे अति प्राचीन एक सुन्दर बडे वडे जिन मन्दिर है किन्तु यह मन्दिर नवीनतम आधुनिक वस्तु कला से निर्मित अपने ढग का एक ही विशाल भव्य एव अद्वितीय दर्शनीय जिन मन्दिर है ।
__ अपनी सुंदरता के कारण यह मन्दिर अल्पकाल मे ही इतना प्रख्यात हो गया है कि जयपुर आने वाले तीर्थयात्री इसके दर्शन करने अवश्य ही आते है, तथा दर्शन करके अपनी जयपुर यात्रा को सफल मानते हैं ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे