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डेरागाजीखान मे सवत् 1909 मे श्री बालचन्द सिगवी थे जिन्हे स्वाध्याय के प्रति विशेष अनुराग था इसलिये उन्होने वहा के मन्दिर मे त्रिलोकसार की प्रति श्रावको के स्वाध्याय हेतु भेट की थी। इसी तरह सवत 1909 मे ही शाह सोभराज पारख नामक श्रावक हए जिन्होने भद्रवाह चारित्र की एक प्रति मन्दिर में विराजमान की । प्रस्तुत प्रति दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर मे मौजूद है ।
सवत 1909 मे ही श्रावकाचार भाषा की एक प्रति श्री होवणमल पारख की धर्मपत्नि ज्ञाननन्दी ने स्वाध्याय वास्ते डेरागाजीखान मन्दिर मे भेट की थी।
विक्रम की 19वी शताब्दी मे जयपुर और डेरागाजीखान मे गहरा सम्बन्ध हो गया था। ग्रन्थो की प्रतिलिपि कराने का काम भी जयपुर मे ही सम्पन्न होता था । आचार्य कल्प पडित श्री टोडरमलजी, पडित श्री द्यानतरायजी तथा पडित श्री सदासुखदासजी कासलीवाल आदि की ख्याति डेरागाजीखान में भी पह च गई थी तथा उनके ग्रन्थो का स्वाध्याय, शास्त्रसभा, गोष्ठियो एव व्यक्तिगत तौर पर होता रहता था। इस तरह डेरागाजीखान की समाज मे धर्म के प्रति बहत अधिक उत्साह था । यहा नित्य प्रति प्रात - काल साजवाज के साथ मधुर स्वर लहरी मे जिनेन्द्र पूजन होती थी, तत्पश्चात् परम्परागत शास्त्र सभा चलती थी, जिसमे वृद्ध, प्रौढ युवक एव महिलाऐ आदि सभी अनिवार्य रूप से भाग लेते थे इसीलिये वहा के प्राय सभी वर्गों को चारो अनुयोगो के शास्त्रो की अच्छी जानकारी थी। सायकाल भक्ति गीत आरती के पश्चात् सामूहिक तात्विक गोष्ठी चलती थी, तदुपरात आध्यात्मिक एव वैराग पोषक भजनो से सभा विसर्जित होती। इस प्रकार वहा के लोगो की दैनिक जीवनचर्या का काफी समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत होता था।
वर्ष मे आने वाले प्रत्येक पर्न विशेष तौर पर दशलक्षण पर्ण, बड़े उत्साह एन उल्लास के साथ मनाया जाता था। अधिकाश पुरुष एन महिलावर्ग व्रत सयम आदि का पालन विशेष तौर पर करते थे और अधिकाश समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत होता
1. त्रिलोकसार जीको पूजा जी का पाठ समति बालचन्द सिंगवी विराजमान कीता
श्री मन्दिर जो डेरागाजीखान विच अहारि सुदी 2 संवत् 1909 श्री भद्रबाह चरित्र जी री भाषा सा० सोबरा पारख विराजमान कीता श्री डेरा
गाजीखान के मन्दिर प्रहारि सुदी 9 संवत् 1909 3. वैशाख कृष्णा 12 सं0 1909 श्रावकाचार भाषा ज्ञानानन्दी सा० होवणमल पारख
की वध विराजमान कीता आषाढ सुदी 6 सं0 1909
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे