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इस प्रकार 100 से भी अधिक ग्रन्थ इसी शताब्दि मे लिपिबद्ध करवा कर ग्रन्य भण्डार मे विराजमान किये गये ।
इन ग्रन्थो को हम निम्न विषयो मे विभाजित कर सकते है .द्रव्यानुयोग (अध्यात्म ग्रन्थ)
मुलतान दिगम्बर जैन समाज ने प्रारम्भ से ही अध्यात्म ग्रन्थो की स्वाध्याय में विशेष रूचि ली है इसलिये शास्त्र भण्डार मे समयसार एव नाटक समयसार प्रवचनसार भाषा (हेमराज), अष्ट पाहुड भाषा (प० जयचन्द छावडा), परमात्मप्रकाश (योगीन्दुदेव) नियमसार, ज्ञानार्णव, नात्मानुशासन भाषा, जैसे ग्रन्थो का सग्रह किया तथा उनके स्वाध्याय मे रूचि ली। करणानुयोग (सिद्धान्त ग्रन्थ)
सिद्धान्त ग्रन्थो का भी शास्त्रभण्डार मे अच्छा संग्रह है। गोम्मटसार भाषा (प टोडरमल), पचास्तिकाय, तत्वार्थरत्न प्रभाकर, द्रव्य सग्रह, पुरुषार्थ सिद्धयुउपाय, सर्वार्थसिद्धि भाषा, अर्थप्रकाशिका नयचक्र, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, त्रिलोकसार जसे लोकप्रिय एव प्रचलित ग्रन्थो का अच्छा संग्रह मिलता है। चरणानुयोग ग्रन्थ
मुलतान समाज मे शास्त्रानुसार आचरण की विशेष प्रवति एव रूचि थी । इसीका ही परिणाम था कि अभक्ष्य भक्षण (कन्द मूल), रात्रि भोजन, आदि की प्रवृति बिलकुल हो नही थी । पानी छान कर पीना आदि साधारण क्रिया की बात थी। यह सब चारित्न ग्रन्था की स्वाध्याय का ही परिणाम था-इसलिये शास्त्र भण्डार मे सागर धर्मामृत, आचार सार, अमितगति श्रावकाचार, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, गुरु उपदेश श्रावकाचार, तिरेपन क्रियाकोष, मूलाचार, अनागारधर्मामृत आदि चरणानुयोग के ग्रन्थो का कई-कई प्रतिया उपलब्ध है । प्रथमानुयोग (पुराण ग्रन्थ)
पुराण विषयक ग्रन्थो की स्वाध्याय मे देश के अन्य भागो की तरह मुलतान समाज ने भी रूचि ली। हिन्दी भाषा मे पुराण ग्रन्थो का लेखन महाकवि दौलतराम कासलीवाल से प्रारम्भ हुआ और आदि पुराण, हरिवश पुराण, पद्मपुराण, पार्श्वपुराण, वर्धमानपुराण, नेमिनाथ पुराण आदि जैसे ग्रन्थो की प्रतियाँ प्राप्त की गई और शास्त्र भण्डार मे रखी गयी। पुराण साहित्य का पठन पाठन विगत 200 वो मे खव रहा तथा प्रत्येक श्रावक एव श्राविकाओ ने उसके स्वाध्याय मे रुचि ली। यही कारण है कि उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक सभी नगरो एव गावो मे पुराण ग्रन्थो का सग्रह मिलता है । वास्तव में इन पगण ग्रन्थो के स्वाध्याय ने जैन समाज की धार्मिक निष्ठा को दृढ करने में अपना पूर्ण योगदान दिया।
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.मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के प्रालोक में