________________
भाषा के है। इसके अतिरिक्त प्राकृत एव सस्कृत के भी कुछ ग्रन्य उपलब्ध होते है । सबसे वडी बात तो यह है कि भण्डार मे 17वी शताब्दि से पहिले की एक भी पालिपि नहीं मिलती है जिससे यह तो स्पष्ट है कि वर्तमान भण्डार की स्थापना सम्राट अकबर के शासन काल में हुई थी।
शास्त्र भण्डार मे नाटक समयसार की प्राचीनतम पाण्डलिपि है जो सवत् 1745 में आषाढ सुदी 8 सोमवार की लिखी हुई है। इसके पश्चात सवत् 1748 की दो पाण्डुलिपिया है जिनमे यह चतुर्विशति जिनचरण गोत है तथा दूसरी समयसार नाटक एव बनारसी विलास की प्रति है । प्रथम का लिपि काल सवत् 1748 मगसिर की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तथा दूसरे का लिपि काल मगसिर शुक्ला दोज का है । प्रथम प्रति माह भैरवदास राखेचा के पुत्र के पढने के लिये तथा दूसरी स्वय भैरवदाम के पटने के लिये लिखी गयी थी। कमा उत्तम युग था जब पिता पुन के लिये अलग-अलग पाण्डुलिपिया तैयार की जाती थी। भैरवदास बडी आयु के थे। इसलिये उन्होने अपने लिये समयमार की स्वाध्याय करने की इच्छा प्रकट की जवकि अपने पुत्र के लिये चौबीस तीर्थकरो के गीतो के स्वाध्याय को व्यवस्था की गई। पिता ने स्वय के लिये अध्यात्म मार्ग चुना जवकि पुत्र के लिये उसने भक्ति मार्ग को उत्तम समझा।
इसके पश्चात् सवत् 1750 मे धर्म चर्चा ग्रन्थ की प्रतिलिपि म्वय मुलतान मे ही की गयी। इसके प्रतिलिपिकार थे ५० राजसी प्रशस्ति मे मुलतान को मौलित्राण' लिखा है । इसी वर्ष नाटक समयसार की दूसरी प्रतिलिपि की गयी । यह भी मुलतान में हा लिखी गयी। इसमे प० धर्मतिलक का नाम लिपिकार के रूप मे लिखा है । उक्त दोनो प्रतिया के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उस समय मलतान भी साहित्य लेखन का केन्द्र था । वहा एक ओर पाठक थे तो दूसरी ओर ग्रन्थो के लिपिकार भी थे।
सवत 1778 मे समयसार नाटक की फिर प्रति की गयी । शास्त्र भण्डार म 18वी शताब्दि की और भी प्रतिया है जो सभी समयसार नाटक की है। नाटक समयसार की स्वाध्याय का युग अपने चरमोत्कर्प पर था। वैसे विक्रम की 19वी शताव्दि मे भा नाटक समयसार की बरावर लिपिया होती रही। यहा के शास्त्र भण्डार मे नाटक समयसार की 11 पाण्डलिपिया सग्रहीत है जो मलतान जैन समाज के महाकवि बनारसी दास के ग्रन्थो के स्वाध्याय के प्रति आकर्षण का द्योतक है।
विक्रम की 19वी शताब्दि मे शास्त्र भण्डार मे एक के पश्चात् दूनरा ग्रन्थ था तो मुलतान मे ही लिखा गया था फिर आगरा, जयपूर, देहली आदि नगरो मे गन्थोपी प्रतिया करवाकर शास्त्र भण्डार मे विराजमान की जाने लगी। इस दृष्टि से सवत् 1804 में समयसार नाटक, सवत् 1811 मे क्रियाकोश एव सर्वाय सिद्धि, टीका, तत्वार्थसूत्र श्रुत सागर की भाषा टीका, सवत् 1809 मे धर्मविलास (द्यानतराय), सवत् 1848 मे वतमान
1 प० राजसी लिखते श्री मौलि-त्राण मध्ये लिखतम् ।
56 ]
G मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक में