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भक्ति एवं पूजा साहित्य
अर्हद भक्ति एव पूजा साहित्य समाज मे अत्यधिक लोकप्रिय रहा है। भक्ति और पूजा दोनो ही प्रत्येक गृहस्थ के लिये आवश्यक कार्य माना जाता रहा है। इसलिये पूजा, स्रोत्र एव पदसाहित्य पर्याप्त संख्या मे उपलब्ध होता है । मुलतान समाज जिस तन्मयता के साथ भगवान की पूजा करता है तथा पूजा एव भक्ति मे रस लेता है वह देखने योग्य है। इसलिये मुलतान के शास्त्र भण्डारो मे इन विषयो के ग्रन्थो का तथा चौबीस तीर्थंकरो की पूजाओ का अच्छा संग्रह है।
उक्त विषयो के ग्रन्थो के अतिरिक्त भक्ति, आध्यात्मिक एव उपदेशक काव्य रचनाओ के बनारसी विलास, पारस विलास, ब्रह्म विलास, भूधर विलास, दौलत विलास, द्यानत विलास आदि ग्रन्थो का भी अच्छा सग्रह है ।
शास्त्र भण्डार के ग्रन्थो की सुरक्षा एवं उनके रखरखाव की व्यवस्था इतनी सुन्दर है कि मूलतानी भाइयो का जिनवाणी के प्रति बहुमान सहज ही प्रशसनीय बन जाता है, नही तो हमारे मन्दिरो के व्यवस्थापको ने ग्रन्थ भण्डारो की सुव्यवस्था पर बहुत कम ध्यान दिया है । यही कारण है कि सैकडो हजारो ग्रन्थ अनायास ही जीर्णशीर्ण होकर सदाके लिये समाप्त हो गये।
शास्त्र भण्डार मे प दौलतराम ओसवाल की पार्श्वनाथ चरित भाषा की एक पाण्डुलिपि है जो अब तक अज्ञात एव अनुपलब्ध थी। ग्रन्थ का विस्तृत परिचय इससे पूर्व के पृष्ठों मे दिया जा चुका है।
साहित्य प्रकाशन की दृष्टि से यद्यपि हमे अभी तक मुलतान से प्रकाशित कोई वडी रचना नहीं मिल सकी है लेकिन सन 1924-25 मे ही पुस्तको का प्रकाशन प्रारम्भ हो गया था और इसमे सबसे अधिक योग प. अजितकुमारजी शास्त्री का रहा जिन्होने 25 से अधिक पुस्तके लिखकर अथवा सम्पादन करके उन्हे प्रकाशित कराई जिनमे "सत्यार्थ दर्पण", "श्वेताम्बर मत समीक्षा", "दु ढक मत समीक्षा"; "विनाश के सात कारण", व "जैन महिला गायन", आदि के नाम उल्लेखनीय है।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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