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बोधि दुर्लभ बोधि लाभ भावना भली, जीवा वझो री, जीवा० आतम ने हितकार । जीवा बूझो री । निज घट मांही पावसा जीवा बूझो री, जीवा बूझो। निज गुण पर गुण ज्ञान भविक जीवा बूझो री दस दृष्टान्ते दोहेला जीवा बूझो री मानुष भव अवतार भविक जीवा बूझो री। जैन सिद्धान्त सुणो करया, जीवा बूझो री आलस चित्त निवार भविक जीवा बूझो री संशय विमोह विभ्रम तजो, जीवा बूझो री सरधान शुद्ध धार, भविक जीवा बूझो री एक पक्षे दृष्टान्त छ जीवा बूझो री मिथ्या रजनी दूर भविक जीवा बूझो री विषय महा मंझार, निज गुण सुख सभाल । भविक० सवै सिद्धान्ता ने सार छै जीवा बूझो री अन्तर दृष्टि उधार भविक जीवा बूझो री नवा कर्म बन्धे नही जीवा बूझो री जीवा० पूर्वला क्षय आन अविक जीवा बूझो री रुचि श्रद्धा परतीत, जीवा बूझो री जीवा बूझो री
धर्भ भावना धर्म जिनेश्वर भाषिया जी, व्यवहार निश्चय जान, निरबाछित वाहिज रहा जी, निश्चय अन्तर धार । जैन धर्म छे सार भविक नर जैनधर्म छे सार । द्रव्य क्षेत्र काल भव भ्रमणी भावे, धर्म सोधन भणा लेख, चार वार अनत मै पाया, आतमभाव अदेख । भविक नर आपापर नव भेद पिछानो, शिव दा कारण सो ही जानो चारो कारण आवी मिलता, तब लेसू निर्वान । भविक नर ... , धर्म शब्द बोले है सब जग, पण तो उदय विभाव। ता कारण जन पाम्या नाहीं, धर्म है वस्तु स्वभाव । भविक नर अवति सम्यक गुण धारी, धर्म आराधे जे । देशव्रती श्रावक सू विचारी, अनुभव स्वादी ते । भविक नर करणी दशाविधि मुनि आराधे, अन्तर आतम शुद्ध ।
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० मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में