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लोग वापस अपने घरो मे जाकर रहने लगे । आपने श्रावकाचार भाषा वचनिका, नानानदपूरित निरभर-निजरस आदि की प्रतिलिपिया प० क्षेम शर्मा से मुलतान मे ही करवाई जो आज भी शास्त्र भण्डार मे मौजूद हैं । आपके किशनचद एव नेमीचद जी दो पुत्र थे ।
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श्री चौथूरामजी सिंगवी श्री चौथूरामजी पुत्र श्री गोपालदासजी सिंगवी पहले श्वेताम्बर जैन थे। श्री घनश्यामदास जी के साथ तत्त्व चर्चा से सही सिद्धान्त एव आत्मकल्याण का सही मार्ग समझ मे आ जाने के कारण दिगम्बर धर्मं मे दीक्षित हो गये और अपना सारा जीवन धार्मिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।
आप प्रात काल उठते ही सामायिक, स्वाध्याय आदि स्वय करते तथा अन्य साधर्मी भाइयो को भी कराते । तत्पश्चात् नित्यकर्म से निवत होकर मदिर जाकर स्वय पूजन आदि करते एव युवको को पूजा स्वाध्याय आदि की । प्रेरणा देते थे। सभा मे शास्त्र प्रवचन सुनने के पश्चात् घण्टो खुद स्वाध्याय करते और अन्य भाइयो के साथ चर्चा करते । इसमे श्री भोलारामजी . बगवानी उनके विशेष साथी थे।
श्री चौथूरामजी सिंगवी आपको मोक्ष-मार्ग प्रकाशक मे विशेष रुचि थी। बीसो वार उसका स्वाध्याय किया था जिससे उन्हे वह कठस्थ सा हो गया था। वे वच्चो, युवको, सभी को न्वाध्याय करने की प्रेरणा देते । स्वाध्याय के बल पर ही उनको सिद्धात की अच्छी जानकारी हो गयी थी।
वे अन्य मतावलवियो के साथ जैन सिद्धातो के बारे मे विशेपकर ईश्वर कर्ता, अहिंसा आदि विषयो पर ही चर्चा करते थे । यहा तक कि मुसलमानो के साथ मसजिद आदि मे भी जाकर अहिंसा आदि के महत्व पर वार्तालाप करते।
उनका जीवन साधारण था । स्वभाव से वे सरल किन्तु आचरण मे दढ ये । देगा जाय तो उनका जीवन व्रतियो जैसा था । मच्चाई, ईमानदारी के कारण उनका धन्धा भी अच्छा चलता था। वे नवयुवको को स्वतत्र कामधन्धा करने को प्रेरित करते रहते थे। यही नही उन्हे हर तरह से सहयोग देकर एव उनके विवाह आदि करा कर अच्छा नदगहम्प यगाने मे पूर्ण सहयोग देते थे। समाज मे उनकी बातो का पूर्ण विश्वास या। जैसा वो कहते वोही होता । इसी तरह से श्री चौथूराम ने पत्रानो युवको के जीवन का निर्माण किया । अपने
• मुलतान दिगम्बर जैन तमान--तिहार फे आलोक में