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सम्माननीय व्यक्ति थे तथा उन्होने वहा के शास्त्र भण्डार मे श्रावकाचार भाषा, भगवती आराधना भाषा, हरिवश पुराण भाषा एव प्रवचनसार भाषा आदि शास्त्र लिखवाकर भेट किये थे। सबकी सुचि अलग अलग थी । कोई श्रावकाचार को उपयोगी मानता था तथा दूसरा हरिवंशपुराण को। एक की दृष्टि मे भगवती आराधना का अधिक उपयोग था तो दूसरे की दृष्टि मे प्रवचनसार भाषा का अधिक महत्व था। लेकिन सभी का ध्यान समाज मे ज्ञानवर्धन की ओर था।
सम्वत 1923 मे दर्शनसार भाषा की प्रतिलिपि प्राप्त की गयी । यह पं० शिवजीलाल जी की कृति है जो जयपुर के थे। उन्होने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
पंडित शिवजीलाल प्रधान, मध्य सवाई जयपुर थान ।
सकल शास्त्र निर्दार बणाइ, रच्यो दर्शनसार सुभाइ ॥
इसी वर्ष सदासुख कासलीवाल की अर्थप्रकाशिका की पाण्डुलिपि पालम मे अमीचन्द श्रावक से लिखवा कर प्राप्त की गयी । 1 इसी प्रतिलिपिकार द्वारा संवत 1929 मे लालजीत कृत अकृत्रिम जिन मन्दिर पूजा की प्रति की गयी।
सम्वत 1927 मे वहा पडित शिवराम थे जो कश्मीरी पडित थे। समाज के आग्रह से उन्होने मुलतान मे ही परिमल्ल कवि के श्रीपाल चरित्र की प्रतिलिपि की थी। जैन विवाह पद्धति
जब देश मे जैन पद्धति से विवाह कराने की आवाज उठी, तथा विद्वानो द्वारा पुरजोर माग की गयी तो मुलतान समाज कैसे पीछे रहने वाला था। उसने भी सवत 1938 मे विवाह पद्धति की प्रति लिखवा कर समाज के उपयोग के लिये प्राप्त की। इससे समस्त समाज के साथ चलने की उनकी भावना का परिचय मिलता है ।
राजाराम दिगम्बर जैन ओसवाल भी पडित टोडरमलजी, भाई रायमल्ल एव जयचन्द जी के बड़े भक्त थे। उन्होने अपने पढने के लिये श्रावकाचार भाषा वचनिका ज्ञानानन्दपरित निरभरनिजरस की प्रतिलिपि प क्षेम शर्मा से करवायी। पडितजी मुलतान मे ही रहते थे इसलिये वही पर यह कार्य सम्पन्न हो गया। लेकिन इस भाषा
1. अर्थप्रकाशिका-सदासुख-पृष्ठ संख्या 453 रचनाकाल सवत 1914 वैशाख
सुदी 10, लिपिकाल संवत 1923 लिख्यतं अमोचदं श्रावक पालम मध्ये मिती
पौष कृष्ण 2 बार अतवार सवत 1923 । 2. विवाह पद्धति-मिति मंगसिर शुक्ला 15 वार रविवार संवत 1938 लिखायतं
कार्य मुलतान के जैनी लोग अपने पढ़ने के लिये।
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के पालोक मे
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