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घाटी की सभ्यता नाम दिया। मोहनजोदडो से प्राप्त मिट्टी की सीलो (मुद्राओ) पर एक तरफ खडे आकार मे भगवान ऋाभदेव की कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्ति बनी हुई है तथा दूसरी तरफ बैल का चित्र बना हुआ है । इसी तरह हडप्पा की खुदाई मे कुछ खण्डित मतिया प्राप्त हुई है जिसके आधार पर विद्वानो ने लिखा है कि ये हडप्पा -काल की जैन तीर्थंकरो की मूर्तिया जैन धर्म में वर्णित कायोत्सर्ग मुद्रा की ही प्रतीक है। इसी तरह सिंहपुर मे भी जो खुदाई हई थी इसमे भी बहुत सी "जैन मतियो" "जैन मन्दिरो" एव स्तूपो के अवशेष प्राप्त हुए है जो आजकल लाहौर के म्यूजियम मे सुरक्षित है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पजाब मे वैदिक आर्यों के आने से पूर्व प्राग्वैदिक काल से अर्थात् भगवान ऋषभदेव के समय से लेकर आज तक पजाब मे जैन धर्म विद्यमान है । हाँ, यह अवश्य है कि कभी वह सर्वोच्च स्थान पर रहा तो कभी उसने अपना क्षीण रूप भी देखा ।
- पजाब मे विक्रम की 11वी शताब्दि से 15वी शताव्दि तक तथा महमद गजनवी से बादशाह सिकन्दर लोदी तक जितने भी मुसलमान 'शासक हुए उन्होने हिन्दू, जैन एव बौद्ध सम्प्रदायो के मन्दिर एव शास्त्रो को बुरी तरह नष्ट किया तथा मन्दिरो की बहुमूल्य सम्पत्ति लूट कर अपने यहा ले गये । यहा की अधिक ाश प्रजा को मौत के घाट उतार दिया गया तथा अवशिष्ट को मुसलमान बना लिया गया। आज भी काबुल के मुसलमानो मे एक ओसवाल भावडा पठान नाम की जाति है जो यह नहीं जानती है कि उसके पूर्वज कभी जैन थे ।
पाकिस्तान बनने से पूर्व रावलपिण्डी-छावनी, स्यालकोट-छावनी, लाहौर छावनी, लाहौर नगर फिरोजपुर, फिरोजपुर छावनी, अम्बाला एव अम्बाला छावनी, मुलतान, डेरागाजीखान आदि नगरो मे दिगम्बर जैनो के घर एव मन्दिर थे । इन जैनो मे ओसवाल, खण्डेलवाल एव अग्रवाल जातिया प्रमुख थी दिगम्बर एवं श्वेताम्बर जैन ओसवालो को 'भाबडा' कहा जाता था तथा खण्डेलवाल एव अग्रवाल जाति वाले श्रावक, अथवा बनिये कहलाते थे पजाव-प्रदेश मे मुस्लिम शासन-काल मे भट्टारक जिनचन्द्र भट्टारक-प्रभाचन्द्र एव भट्टारक-शुभचन्द्र ने अवश्य विहार किया था तथा वहा दिगम्बर जैन धर्म का प्रचार किया था। इसके अतिरिक्त सवत् 1577 (सन् 1520) मे काष्ठासघी एव माथुरान्वयी भट्टारक गुणभद्रसूरी से सोनीपत में 'अमरसेन चरित्र' 'की साधु छल्ह एव उसकी पत्नी कर्मचन्दही अग्रवाल जैन ने प्रतिलिपि बनवायी थी। 'अमरसेन चरित्र' मे सिकन्दर लोदी का उल्लेख किया गया है और रोहतक नगर के श्रावको की प्रशसा की गयी है।
इसी तरह सवत् 1723 मे लाहौर मे खडगसेन कवि ने त्रिलोकदर्पण कथा की रचना की थी ऐसा उल्लेख ग्रन्थ प्रशस्ति में मिलता है। लाभपुर (लाहौर) मे एक दिगम्बर जैन मन्दिर था वही बैठकर वे धार्मिक चर्चा किया करते थे। उनकी मैली थी जिनके
1. मध्य एशिया एवं पजाब मे जैनधर्म, पृष्ठ सं० 146 2. प्रशस्ति सग्रह डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृष्ठ 80
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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