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८ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
उद्वर्तन, स्थान, कुल, अल्पबहुत्व और प्रकृति, स्थिति, अनुभाग तथा प्रदेशबंध इत्यादि विषयक सूत्र पदों द्वारा इन विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है । जीवों के अन्तर्गत वनस्पतिकाय जीवों का अद्भुत सूक्ष्म विवेचन किया गया है । इसी अधिकार में विवेचित गति-आगति का कथन 'सारसमय' नामक ग्रन्थ में स्वयं के द्वारा कहने का उल्लेख किया है। पर यह ग्रन्थ आज अनुपलब्ध है । वृत्तिकार ने इसकी पहचान व्याख्याप्रज्ञप्ति से की है । जिस विषय के कथन का उल्लेख मूलाचार में है वह विषय श्वेताम्बर परम्परा में उपलब्ध व्याख्याप्रज्ञप्ति में नहीं है । इससे लगता है कि उस समय दिगम्बर परम्परा में वट्टकेर का 'सारसमय' ग्रन्थ अवश्य उपलब्ध रहा होगा। इसके प्रमाण रूप धवलाटीका में भी इसका उल्लेख मिलता है। षटखण्डागम के जीवठाण नामक प्रथम खण्ड की गतिआगति नाम को नवमी चूलिका व्याख्याप्रज्ञप्ति से निकली है। इन सब उल्लेखों के अतिरिक्त गुणस्थान, जीवसमास, मार्गणा, स्वर्ग, नरक, मनुष्य तिर्यञ्च गतियों तथा इनके जीवों आदि का विस्तृत विवेचन इस अधिकार में किया गया है । ग्रन्थकार ने इस अधिकार का नाम 'पर्याप्ति संग्रहिणी' कहा है । मूलाचार पर उपलब्ध व्याख्या साहित्य :
मूलाचार श्रमणाचार विषयक एक प्राचीन एवं प्रामाणिक श्रेष्ठ ग्रन्थ है । दिगम्बर परम्परा के तद्विषयक प्रायः सभी परवर्ती ग्रन्थ इससे प्रभावित अथवा इसके आधार पर लिखे गये दृष्टिगोचर होते है । मूलाचार पर अनेक टीकाएँ तो लिखी ही गई साथ ही इसको मूल आधार बनाकर जिन ग्रन्थों की स्वतंत्र रचना हुई उनमें अनगार धर्मामृत, आचारसार, चारित्रसार, मूलाचार प्रदीप, आदि ग्रन्थ प्रमुख हैं, जिन पर मूलाचार का स्पष्ट प्रभाव है।
आचार्य वसुनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती की मूलाचार पर 'आचारवृत्ति' नामक सर्वार्थसिद्धि टीका संस्कृत भाषा में लिखी गई उपलब्ध है। आ० वसुनन्दि का दूसरा महत्त्वपूर्ण प्राकृत ग्रन्थ वसुनन्दि श्रावकाचार सुप्रसिद्ध ही है । वस्तुतः मूलाचार के विषय को हृदयंगम करने वालों में इनका अग्रणी स्थान है । इनकी आचारवृत्ति इतनी प्रसिद्ध और सरल है कि सामान्य जन भी इसका सुगमता से अध्ययन कर लेते हैं। गूढ़ विषय को स्पष्ट करते हुए चलना और अपनी सहज एवं सरल भाषा में ग्रन्थकार के भावों को प्रकट कर देना यह वसुनन्दि की मुख्य विशेषता है। १. सारसमये व्याख्याप्रज्ञप्त्यां सिद्धान्ते तस्माद्वा भणिते गत्यागतीगतिश्च आग
तिश्च भणिता मया किंचित् स्तोकरूपेण । मूलाचार वृत्ति-१२।१४३ । । २. षट्खण्डागम-संशोधित संस्करण, १९७३, खंड १, भाग १, पुस्तक १,
प्रस्तावना पृष्ठ ६६ का चार्ट
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