Book Title: Mulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 531
________________ - ४८० : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन १. पृथ्वी : पृथ्वी के चार भेद हैं : पृथ्वी, पृथ्वीकाय, पृथ्वीकायिक तथा पृथ्वीजीव । " १. इनमें अचेतन और कठिन गुण धारण करने वाली सामान्य पृथ्वी को पृथ्वी कहते हैं जैसे—मार्ग की धूलि, जली हुई मिट्टी आदि । २. पृथ्वीकायिक जीव जिसे छोड़कर जन्म लेने के लिए अन्यत्र चला गया है उस पृथ्वीकायिक के शरीर को पृथ्वीकाय कहते हैं जैसे -मृत मनुष्य का शरीर । ३. जिसने पृथ्वी को अपना शरीर बना लिया है अर्थात् जो जीव पृथ्वी को शरीर रूप से धारण - करता है उसे पृथ्वीकायिक कहते हैं तथा ४. जो कर्माणकाययोग में है, जिसमें -- पृथ्वीनामकर्म का उदय है किन्तु जिसने पृथ्वी को शरीर रूप में ग्रहण नहीं किया है उस विग्रहगति स्थित जीव को पृथ्वीजीव कहते हैं । 2 'पृथ्वी के छत्तीस भेद : पृथ्वी के छत्तीस भेद इस प्रकार हैं । १. शुद्ध पृथ्वी (मिट्टी), २. बालुका (रेत), ३. शर्करा ( कंकड़), ४. उपल - छोटे गोल पत्थर, ५. शिल्न, ६. लवण, ७. अयस् ( लोहा), ८. ताम्बा, ९ वपुष- रांगा जस्ता या कथील, १०. सीसा ( मीसक), ११. रूप्य - चाँदी, १२. सोना, १३. वज्र या हीरा, १४. हरितालनटवर्णक, १५. हिंगुलक - लाल वर्ण का इंगुल, १६. मनःशिला - मैनसिल या शिलाजीत, १७. सस्यक - हरा रंग वाला, १८. अंजन - सुरमा १९ प्रवाल5- मूँगा, २०. अभ्रपटल - अभरख (अभ्रक), २१. अभ्रबालुका- चमकती रेत ( - - ये सब बादरकाय होते हैं ।) तथा मणियों के विविध प्रकार जैसे २२. गोमेध्यक- गोमेदमणि -- गोरोचनवाली कर्केतनमणि, २३. रुचकमणि - अलसी - पुष्पवर्णं राजवर्तकमणि, २४. अंकमणि - पुलक - प्रवालवर्णमणि, २५. स्फटिकमणि, २६. लोहितांक -पद्मरागमणि, २७. चन्द्रप्रभ - चन्द्रकान्तमणि, २८ वैडूर्य - नीलमणि, २९ जलकांत मणि, ३०. सूर्यकान्तमणि, ३१. गैरिक- गेरूवर्ण रुधिराक्षमणि, ३२. चन्दनरत्नचन्दनगन्ध मणि, ३३. वप्पक - विलाव नेत्र के समान मरकतमणि, ३४. वक - वक वर्णाकार पुष्पराग - पुखराज, ३५. मोच - कदलीपत्र वर्णाकार नीलमणि तथा ३६. मसारगल्ल- - विद्रुम वर्णाकार मसृण पाषाणमणि । * १. पुढवी पुढवीकाओ पुढवीकाइय पुढवीजीवो य - कुन्द० मूलाचार ५१९. २. कुन्द० मूला० टीका ५।८-९ । ३. छत्तीसविहा पुढवी तिस्से भेदा इमे जेया - मूला० ५/८. ४. मूलाचार ६१९-१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596