Book Title: Mulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 545
________________ ४९४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन प्रकार के प्राण होते हैं।' इन्द्रियाँ पांच है, इम सबका ज्ञान करने वाली शक्ति को पाँच इन्द्रियप्राण कहते हैं। मनन करने, बोलने और कायिक क्रिया की शक्ति को क्रमशः मनोबल, वचनबल और कायबल कहते है। पुद्गलों को श्वासोच्छवास के रूप में ग्रहण करने और छोड़ने की शक्ति को श्वासोच्छवास प्राण कहते हैं। किसी भी भव में नियत कालावधि तक जीवित रहने की शक्ति को आयुष्य प्राण कहते हैं। किन जोवों में कितने प्राण : वचनबल, मनोबल, श्वासोच्छ्वास-ये तीन प्राण पर्याप्तक अवस्था में ही होते हैं; अपर्याप्तक अवस्था में नहीं । शेष प्राण पर्याप्तक-अपर्याप्तक दोनों अवस्थाओं में होते हैं। पर्याप्त एकेन्द्रिय जीव में स्पर्शनेन्द्रिय, कायबल, श्वासोच्छ्वास और आयुये चार प्राण होते हैं। अपर्याप्तक एकेन्द्रिय जीव को श्वासोच्छ्वास के बिना शेष तीन प्राण होते हैं। पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीव में स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, कायबल. वाक्बल, उच्छ्वास और आयु-ये छह प्राण होते हैं । अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय जीव में वचनबल और उच्छ्वासरहित चार प्राण होते हैं। पर्याप्तक श्रीन्द्रियजीव में स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, कायबल, वचनबल, श्वासो-. च्छ्वास और आयु ये सात प्राण होते हैं। इसी अपर्याप्तक जीव में वचन और उच्छ्वास छोड़कर शेष पांच प्राण होते हैं। चतुरेन्द्रिय जीव में स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, कायबल, वचनबल, श्वासोच्छ्वास और आयु-ये आठ प्राण होते हैं परन्तु अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय में वचनबल और श्वासोच्छ्वास रहित छह प्राण होते हैं। असंज्ञीपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीव में स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रिय प्राण, कायबल और वचनबल, श्वासोच्छ्वास तथा आयुये नव प्राण होते हैं तथा अपर्याप्तक असंज्ञी में श्वासोच्छ्वास और वचनबल के अतिरिक्त शेष सात प्राण होते है। पर्याप्तसंज्ञी पंचेन्द्रियों में मन सहित दसों प्राण होते हैं किन्तु अपर्याप्तक अवस्था में मन, वचन और श्वासोच्छ्वासइन तीन प्राणों को छोड़कर शेष सात प्राण होते हैं। प्राण और पर्याप्ति : प्राण आत्मिक शक्ति है और पर्याप्ति आत्मा के १. पंचय इंदियपाणा भणवचकाया दु तिण्णि बलपाणा । आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दस पाणा ।। मूलाचार १२।१५०. इंदिय बल उस्सासा आऊ चदु छक्क सत्त अठ्ठव । एगिदिय विगलिंदिय असण्णिसण्णीण णव दस पाणा ।। वही, १२११५१. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596