________________ सम्मति प्रो० डॉ० जगदीश चन्द जैन, बम्बई दिगम्बर परम्परा में मूलाचार और भगवती आराधना इन दोनों ग्रन्थों का बहुत महत्त्व है। इनमें दिगम्बर मुनियों के आचार-विचार, व्यवहार, गमनागमन, वर्षावास, विहार चर्या, वसति स्थान, श्रमण संघ का स्वरूप और आयिकाओं की आचार-पद्धति का जैसा सांगोपांग वर्णन उपलब्ध है, वैसा अन्य दिगम्बरीय शास्त्रों में दिखाई नहीं देता, इस दष्टि से 'डा० फूलचन्द जैन प्रेमी की कृति 'मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन' स्वागत योग्य समझी जायेगी। इसमें श्रमणाचार से सम्बन्धित विविध विषयों का सांगोपांग विवेचन किया गया है। निश्चय ही यह सामग्री भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित निर्ग्रन्थ परम्परा का समाजशास्त्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। प्रस्तुत कृति के लेखक ने मूल विषय का विवेचन करते हए बीच-बीच में महत्त्वपूर्ण श्वेताम्बरीय अन्थों के तुलनात्मक उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। जिससे ग्रंथ की प्रामाणिकता बढ़ जाती हैं। आशा है वे भविष्य में इस प्रकार की अन्य समीक्षात्मक रचनाओं को प्रस्तुत कर जैन धर्म के प्राचीन इतिहास को उजागर करेंगे। सिद्धान्ताचार्य पं० जगन्मोहन लाल शास्त्री, कटनी दिगम्बर जैन श्रमणचर्या के मलग्रन्थ मलाचार पर डॉ० फूलचन्द्र जैन प्रेमी का यह शोध प्रबन्ध पढ़कर हार्दिक प्रसन्नता हई। इसमें प्रतिपादित सभी विषयों पर डॉ. प्रेमी ने अपनी पैनी दृष्टि से समीक्षात्मक व तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। यह जैन परम्पराओं में प्रतिपादित श्रमणचर्या के भेद-प्रभेदों की विभिन्न धाराओं का निष्कर्ष है। विद्वान् लेखक ने इस ग्रन्थ के छह अध्यायों में श्रमण के मूलगुण, उत्तरगुण आदि का सुन्दर विवेचन करते हए श्रमग के आन्तरिक एवं व्यावहारिक आचारविचार, साधना, आहारचर्या, व्यवहार, श्रमण संघ एवं जैन धर्म-दर्शन के सिद्धान्तों का अच्छा प्रतिपादन किया है / इस श्रेष्ठ कृति के लिए विद्वान् लेखक साधुवादाह हैं / मेरा उन्हें शुभाशीष है कि वे जीवन के सभी क्षेत्रों में बढ़ें और स्व-पर कल्याण करने में समर्थ हों / Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibraa