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३६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन ___ इस विवरण में मूलाचार को वट्टकेर कृत बतलाते हुए उन्हें कुन्दकुन्दाचार्य के समकालीन माना है।
डॉ० नेमिचन्द शास्त्री ने मूलाचार को वट्टकेराचार्य की रचना बतलाते हुए लिखा है : मूलाचार का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि वट्टकेर एक स्वतन्त्रं आचार्य हैं और ये कुन्दकुन्दाचार्य से भिन्न हैं।
समीक्षा एवं निष्कर्ष : मूलाचार के कर्ता से सम्बन्धित मान्यताओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यह एक समस्यामूलक ग्रन्थ रहा है किन्तु अब दिगम्बर परम्परा का मूल प्राचीन साहित्य जैसे-जैसे सामने आ रहा है तथा उसका तुलनात्मक अध्ययन हो रहा है वैसे-वैसे मूलाचार की मौलिकता और प्राचीनता के काफी प्रमाण सामने आ रहे हैं । अन्वेषण के दौरान इस विषय में ऐसे तथ्य दृष्टिगोचर होते हैं जिनके आधार पर यह कृति आचार्यवर्य वट्टकेर की ही सिद्ध होती है। यहाँ उपर्युक्त सभी मतभेदों की समीक्षापूर्वक विवेचना प्रस्तुत है।
मूलाचार को कुन्दकुन्दाचार्य कृत मानने का प्रारम्भ वसुनन्दि कृत वृत्ति के अन्त में उल्लिखित पुष्पिका से होता है। कन्नड़ भाषा की टीकाओं पर भी कुन्दकुन्दाचार्य कृत होने का उल्लेख आ गया। इन प्रमाणों तथा कुन्दकुन्दाचार्य की कुछ गाथाओं से मूलाचार की गाथाएं समान होने के आधार पर आधुनिक विद्वानों में श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार, जिनदास पार्श्वनाथ शास्त्री आदि उल्लिखित विद्वानों ने वट्टकेराचार्य एवं कुन्दकुन्दाचार्य को एक माना है । किन्तु इन विद्वानों को वस्तुस्थिति तक पहुँचने के लिए विशेष प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पाये। क्योंकि उस समय तक न तो अन्वेषण के क्षेत्र का उतना विकास हो पाया था और न इस परम्परा विषयक उतना साहित्य ही प्रकाश में आ पाया था ।
यहाँ एक प्रश्न यह भी हो सकता है कि मूलाचार की आचारवृत्ति के अन्त में पुष्पिका के अन्तर्गत आचार्य कुन्दकुन्द का नाम कैसे आया ? यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि आचार वृत्तिकार वसुनन्दि ही अपनी वृत्ति के प्रारम्भ में और अन्त में मूलाचार को वट्टकेराचार्य की रचना होने का उल्लेख करते हैं । तब ये ही अन्त की पुष्पिका में मूलाचार को कुन्दकुन्दाचार्यकृत होने का उल्लेख कैसे करेंगे ? स्पष्ट है कि वसुनन्दि जैसे प्रामाणिक आचार्य एक ग्रन्थ को दो आचार्यों का कर्तृत्व नहीं कह सकते हैं। तथ्य यह है कि कुन्दकुन्दाचार्य
१. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग २, पृ० ११९.
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