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१६ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन
चा० पा० - महिलालोयण पुव्वर इसरण - संसत्तवसहि - विकहाहि । पुरिसेहि विरओभावणा पंचावि तुरियम्मि ||३५|| अन्य समानताएँ :
मूलाचार - मग्गो मग्गफलं तिय दुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो खलु सम्मत्तं मग्गफलं होइ णिव्वाणं ||५1५1 नियमसार - मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो मोक्खउवायो तस्सफलं होइ णिव्वाणं ||२| मूलाचार - रागी बंधइ कम्मं मुच्चइ जीवो विरागसंपण्णो । एसो जिणोवएसो समासदो बंधमोक्खाणं || ५|५० | समयसार - रत्तो बंधदि कम्मं मुंचदि जीवो विरागसंपण्णो । एसो जिणोवदेसो तम्हा कम्मेसु मा रज्ज ।।१५०। उपसंहार विषयक समानता :
मूलाचार - एवं मए अभिशुदा अणगारा गारवेहिं उम्मुक्का |
धरणिधरेह य महिया देतु समाधि च बोधि च ॥९॥१२५॥ योगिभक्ति एवं मएअमित्थुया अणयारा रागदोसपरिसुद्धा । संघस्स वरसमाहि मज्झवि दुक्खक्खयं दितु ॥२२॥ मूलाचार — तह सव्वलोगणाहा विमलगदिगदा पसीदंतु || ८|७६ ॥ श्रुतभक्ति - सिग्धं मे सुदलाहं जिणवर वसहा पयच्छंतु || ११||
उपर्युक्त समानताओं के अतिरिक्त मूलाचार की सबसे अधिक समानता नियमसार से है । जैसे मूलाचार के प्रथम अधिकार की गाथा संख्या ५ से १५ और नियमसार की गाथा संख्या ५६ से ६५ तक समान हैं। मूलाचार के षडावश्यक अधिकार की गाथा संख्या २३ से ३२ तक नियमसार की गाथा संख्या १२५ से १३३ तक प्रायः समान है । अन्तर केवल इतना है कि इन गाथाओं का उत्तरार्द्ध एक सा होने से मूलाचार में दो गाथाओं के पश्चात् नहीं दिया गया । जबकि नियमसार की प्रत्येक गाथा में वह दिया हुआ है । आचार्य कुन्दकुन्द के एक ग्रन्थ की कोई-कोई ऐसी भी गाथाएँ हैं जो कि मूलाचार में भी उपलब्ध हैं तथा वे ही कुन्दकुन्द के अन्य दूसरे ग्रन्थों में भी पाई जाती
। जैसे—
अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणसमद्दं । जाण अलिगग्गहणं जीवमणिद्दिसं ठाणं ॥
यह गाथा प्रवचनसार २८०, नियमसार ४६ और भावपाहुड ६४ में पाई जाती है ।
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