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३२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन कुन्दाचार्य । दोनों ग्रन्थों में कुछ मात्र गाथाओं को छोड़कर शेष समान हैं । पर वट्टकेराचार्य व कुन्दकुन्दाचार्य एक ही व्यक्ति थे ।
पं० परमानन्द शास्त्री ने मूलाचार को पहले कुन्दकुन्दाचार्य कृत' इसके बाद संग्रह ग्रन्थ तथा पुनः मूलाचार की मौलिकता सिद्ध करते हुए इसे कुन्दकुन्दाचार्य कृत बताया ।४ इन मतों के बाद भी अभी कुछ समय पूर्व प्रकाशित अपने एक लेख द्वारा इन्होंने अपनी पूर्व मान्यताओं का खण्डन करके पं० नाथूराम जी प्रेमी की मान्यता का समर्थन किया और इसे वट्टकेराचार्य विरचित बताया।
पं० जिनदास पार्श्वनाथ शास्त्री फडकुले ने मूलाचार की भाषानुवाद की प्रस्तावना में इसे कुन्दकुन्दाचार्यकृत मानकर तथा मूलाचार के रचयिता के स्थान पर कुन्दकुन्दाचार्य का ही नाम देकर, इसे वट्टकेराचार्य कृत होने का खंडन किया है। इसी प्रस्तावना में कुछ कन्नडी प्रतिलिपियों आदि के भी प्रमाण दिये हैं।
मूलाचार को संग्रह ग्रन्थ मानने वाले : मूलाचार को अनेक विद्वान् मौलिक कृति न मानकर एक संग्रह ग्रन्थ मानते हैं। पं० परमानन्द जी ने मूलाचार में दिगम्बर-श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों की अनेक गाथाओं की समानता के आधार पर इसे संग्रह ग्रन्थ माना था। किन्तु ये अपनी इस पूर्व मान्यता का खण्डन करके इसे मौलिक एवं वट्टकेराचार्य की कृति सिद्ध कर चुके हैं।
मनि श्री दर्शनविजय जी ने अन्य ग्रन्थों की गाथाओं की समानता के आधार पर मूलाचार को उपलब्ध जिनागम और श्वेताम्बर जैनग्रन्थों से ही
१. मूलाचार, पं० जिनदास पार्श्वनाथ शास्त्री फड़कुले कृत भाषानुवाद
प्रकाशक-आचार्य शान्तिसागर जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्था, फल्टन,
वी० नि० २४८४ । २. अनेकान्त, वर्ष २, किरण ३, पृ० २२१-२२४ । ३. वही, वर्ष २, किरण ५, (१९४०) पृ० ३१९-३२४ । ४. वही, वर्ष १२, किरण, ११, पृ० ३५५-३५९ । ५. वीर निर्वाण स्मारिका, जयपुर (१९७५), पृ० २।६५-६७ । ६. अनेकान्त, वर्ष २, किरण ५, पृ० ३१९-३२४ । ७. वीर निर्वाण स्मारिका, जयपुर, १९७५, पृ० २०६५-६७ ।
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