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अपने ध्यान का ध्येय बनाने से भव्यजीव
स्वद्रव्य परद्रव्य का
तथा
औपाधिक भाव एव स्वभाव-भाव का भेद विज्ञान करते हैं
ऐसे
स्वय सिद्ध
शुद्धात्म स्वरूप को दर्शाने वाले
प्रतिविवादर्श
कृत्कृत्य परमेष्ठी
श्री सन्मति प्रभु
के
पावन-पाद- पद्मो
मे
हमारी कोटि कोटि अर्चनाएँ अर्पित हैं
परम- पुनीत पच्चीस वें शतक पर भाव-भोनी विनयाञ्जलि
अर्पयिता :
ई० डी० अनंतराज शास्त्री
मु पो नन्लूर वाया तेल्लार (एन ए डी. ई ) मद्रास