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जिहोने
इस अवसर्पिणीकाल के चौथे चरण की कर्मभूमि में गर्भावतरण एव जन्मावतरण के
अलौकिक दृश्य दिखाये
तथा
वैराग्य प्रकरण एव तत्त्व वोध के प्रतापी पुरुषार्थ ने उसे तपोभूमि में परिणत कर दिया ऐसे
जीवन रगभूमि के अप्रतिम अतिम अधिनायक
तीर्थेश्वर श्री वर्द्धमान प्रभु ने
सासारिक स्वागो से मुक्ति पाकर जो
अपने सहज सिद्ध शाश्वत स्वरूप की उपलब्धि की
वे
हमारे भी नयन-पथ गामी वने
परम- पुनीत पच्चीस वे शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि
अर्पयिता :
ज्योतिषाचार्य त्रिलोकी नाथ जैन
२३४१ धर्मपुरा देहली
११०००६