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मानस्तम्भ दर्शन और अहंकारी इन्द्रभूति
गौतम का दर्प दलन
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फिर क्या था गौतम ज्ञानी का मिथ्या मद सारा चूर हुआ। स्तम्भ देख स्तम्भित था मिथ्यात्व अंधेरा दूर हुआ । सम्यक्त्व जगा निर्ग्रन्थ हुआ सन्मति का गणधर बन पहला । श्रुत द्वादशाग में भाव गूंथ जिनवाणी अमृत रहा-पिला ।।
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