Book Title: Mahavira Chitra Shataka
Author(s): Kamalkumar Shastri, Fulchand
Publisher: Bhikamsen Ratanlal Jain

View full book text
Previous | Next

Page 307
________________ इन्द्र की सूझ-बूझ ( १ ) सर्वज्ञ केवली हुए वीर फिर भी दिव्यध्वनि नही खिरी । छियासठ दिन यद्यपि वीत गये फिर भी मोनी है वीरश्री ॥ ( २ ) सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र शीघ्र इसका रहस्य जब जान चुका । तव वृद्ध विप्र का स्वॉग बना गुरु कुलाचार्य के निकट रुका ॥ ( ३ ) जो पच शतक निज शिष्यो को वेदान्त पढाया करता था । निज विद्या प्रतिभा का मिथ्या बस दभ सदा ही भरता था ॥ ( ४ ) उस युग ने लोहा माना था उसके अकाट्य शास्त्रार्थों का । या याज्ञिक क्रिया काड वेत्ता ज्ञाता था नाना अर्थों का ॥ ( ५ ) हो ज्ञान अल्प अथवा अतिशय पर यदि उसमे सम्यकता है । तो वन्दनीय वह देवो से वरना वह केवल मिथ्या है || ( ६ ) था इन्द्रभूति गौतम बहुश्रुत आचार्य किन्तु मिथ्यात्वी था । पर गणधर होने योग्य पात्र वस एक मात्र वह द्विज ही था ।। ( ७ ) जिनवर वाणी जो झेल सके उस युग का ऐसा योग्य पाव । सौधर्म इन्द्र की प्रज्ञा मे था इन्द्रभूति ही एक मात्र || (5) इसलिये वृद्ध का स्वांग बना वह इन्द्र विप्र को ले आया । उस समवशरण की ओर जहाँ था मानयंभ उन्नत काया ॥ (१३५)

Loading...

Page Navigation
1 ... 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321