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तन के राजकुमार सलौने, मन के वे सन्यासी थे । जीवन में मानवता बिखरी, घट घट के वे वासी थे । वे भोगी, कैसे बन जाते, योगी बन कर आये थे । तीस वर्ष की आयु मे ही, वीतराग गुण गाये थे ॥ मानवता की रक्षा करने, हाथ उठा वरदान पुण्य - दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का ॥
का ।
(२०) जिधर बढे थे चरण आपके, शवनम अर्ध्य चढाती थी । साधे अमर सुहागिन बनकर, नई ज्योति दिखलाती थी । रूप रंग की रजनी गधा, जीवन - कला सिखाती थी । मोक्ष ज्ञान की दर्शन लीला, अर्थो मे समझाती थी ॥ मंगल चरण चमकते ऐसे, ज्यो पल्लव विवान का ।
पुण्य - दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान
का ॥
(२१)
प्रेम सत्य है जग-जीवन का, मुनियो को यह ज्ञान दिया । अमर आत्मा देह वस्त्र है, श्रद्धा का सम्मान किया || जिनकी त्याग तपस्या छूकर, चकित हुआ था ध्रुव तारा । जिनकी पावनता को लेकर शरमाई
गंगा
धारा ॥
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