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साम्यवाद और भ० महावीर
वर्द्धमान महावीर विराट् व्यक्तित्व के धनी थे । शान्ति और क्रान्ति के वे जननेता थे । यद्यपि राजसी वैभव उनके चरणो में लोटता था तो भी पीडित मानवता और जन जीवन से उन्हे सहानुभूति थी। समाज मे व्याप्त अर्थ जन्य विषमता और व्यक्ति उद्भूत काम-वासनाओ के नाग को अहिसा, सयम और तप के गारुडी सस्पर्श से कील कर वे समता, सद्भाव और स्नेह की धारा अजस्र रूप से प्रवाहित करना चाहते थे ।
भ० महावीर का जीवन-दर्शन और तत्त्व- चितन इतना अधिक वैज्ञानिक और सर्वकालिक लगता है कि वह आज की हमारी जटिल समस्याओ के समाधान के लिए पर्याप्त है । आज की प्रमुख समस्या है सामाजिक अर्थजन्य विषमता को दूर करने की। इसके लिए मार्क्स ने वर्ग सघर्ष को हल के रूप मे रखा । शोषक और शोषित के आपसी अनवरत संघर्ष को अनिवार्य माना और जीवन की अन्तश्चेतना को नकार कर केवल भौतिक जडता को ही सृष्टि का आधार माना । इससे जो दुष्परिणाम हुआ वह हमारे सामने है | हमे गति तो मिल गई पर दिशा नही । शक्ति तो मिल गई पर विवेक नही । सामाजिक वैषम्य तो सतह पर कम हुआ प्रतिभासित हुआ पर व्यक्ति के मन की दूरी बढती गई । व्यक्ति के जीवन मे धार्मिकता रहित नैतिकता और आचारहीन विचारशीलता पनपने लगी । वर्तमान युग का यही सब से बड़ा अन्तर्विरोध और सास्कृतिक सकट है । भ० वीर की विचारधारा को ठीक से हृदयगम करने पर समाजवादी लक्ष्य