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स्व-पुरषार्थ
अपने जीवन का हर प्राणी, आप स्वय निर्माता है । जैसा करता, वैसा भरता, कोई न सुख-दुख दाता है || आत्म शक्ति से, वन्ध मुक्ति का श्रद्धामय पौरुष लाओ । भौतिकता की चकाचौध मे आतम को मत विसराओ || आओ०
परमात्मा-पद प्राप्ति
सभी आत्माएँ समान है, शक्ति रूप से भेद नही । नर-नारक- पशु- देव, कर्मकृत योनि आत्म के भेद नही ॥ तप से कर्म दूर कर, जो नर निर्विकार हो जाता है । शुद्ध सिद्ध भगवान् जिनेन्द्र, प्रभु परमात्म कहलाता है ॥
महा परिनिर्वाण
तीस वर्ष उपदेश सुना, अगणित जीवो को ज्ञान दिया । कार्तिक कृष्ण अमावस्या, तन त्याग प्राप्त निर्वाण किया || ढाई हजार वर्ष से जन-मन वीर-चरण आराधक है । महावीर सिद्धान्त पूर्णत विश्व शान्ति के साधक है || आओ० रायचन्द जी ने वापू को वीर संदेश सुनाया था । सत्य-अहिंसा से वापू ने हिन्द स्वतत कराया था || उन्ही वीर के आगे 'कौशल' मव मिल शीश झुकाये हम | आत्म शक्ति को पहिचानें, सच्चे मानव वन जायें हम || आओ ०