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(६) रति अनग मोहित हो बैठे, चितवन पर किलकारी पर । इन्द्राणी का तन-मन टोला, रुनगुन-गनशन ताली पर ।। रीझ गई केशर की क्यारी, खिली मजरी तानो पर। सपने सब साकार हो गये, पुष्पक तीर कमानो पर ।। धर्म-ध्वजा ऐसी लहराई, बादल उड़े विनान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का।
(७) आल्हादित हो उठा हर्ष था, वशी के मधु स्वर गजे। मादक मनुहारो की धुन पर, गले मिले सब इक दूजे ।। पीके फूटे हरे प्यार के, मौसम ने रस बरसाया । धरती के पाँवो मे घुघरू, पवन वाँध कर मुसकाया ।। खुशियाँ ऐसी डोल रही थी, ज्यों वेडा जलयान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का ॥
कल्पवृक्ष ने फूल विखेरे, स्वागत किया बहारो से। नभ में फाग सितारे खेले, उनके पलक इशारो से ।। किसी होठ पर वजी बसरी, किसी हाथ से बीन बजी। चंदन चर्चित कमल ज्योति से, हर दुल्हिन की माग सजी ॥