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बुध विद्यमान होने से दोनों ने अपने-अपने गण और अपनाअपना वल मगल को प्रदान कर दिया। मगल मकर राशि स्थित केतु के साथ है। मगल और केतु ने सूर्य-बुध के तथा स्वय अपने-अपने गुण और बल शनि को प्रदान किये । अव शनि सूर्य, बुध, मगल, केतु के गुणो को धारण करके तुला राशि मे विराजमान है। शनि ने अपना एव सूर्य, बुध, मंगल, केतु के गुण शुक्र को प्रदान कर दिये। इस भाँति शुक्र मे सूर्य बुध, मगल केतु और शनि के वल और गुण समाविष्ट हो गये। राह और गरु कर्क राशि गत होने से चन्द्रमा को गुरु और राह ने अपने-अपने गुण और बल दे दिये । चन्द्रमा कन्या राशि गत है। चन्द्रमा ने अपने तथा गुरु-राहु के गुण वुध को दे दिये इसलिये शुक्र मे सूर्य, बुध, मगल, केतु, शनि, राहु, गुरु और चन्द्र के गुण और वलो का समावेश हो गया। पचम स्थान (क्रीडा स्थान) मे शुक्र कह रहा है कि मुझ मे अष्ट ग्रहो का वल है और उन अष्ट ग्रहो मे भी तीन उच्च के ग्रहो की भावनाये है। मकर लग्न होने से मैं केन्द्र और त्रिकोण का स्वामी होता हुआ विशेपाधिकार को प्राप्त हूँ। मैं इस जातक को यत्र-मन्त्र-तत्र तथा उच्चकोटि की ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त कराने में समर्थ हूँ। जातक को ऐसी अलौकिक विद्या से विभूषित करूँगा जो जन-जन को सदैव आकर्षित करती रहे और इनके गुणो की पूजा अर्चा भी होती रहे।
भगवान महावीर स्वामी को यत्र-मत्र-तत्र सम्वन्धी उच्चकोटि की विद्याये, विशिष्ट बुद्धिमत्ता, महाज्ञानी, सर्वज्ञ होने का जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त हुआ। अपने जीवन काल मे ऐसे ऐसे चमत्कार दिखाये कि जिससे प्राणिमात्र को उनके समक्ष सदा नतमस्तक होना पडा।
सप्तम स्थान मे गुरु कर्क राशि के अन्तर्गत है और राह भी