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५० . मातृ स्थान में स्थित होकर सकेत दे रहा है कि
माता का सुख उच्च कोटि का होना चाहिये, भूमि संवधी सुख तथा घोडे हाथियों सवधी विशेष सुख होना चाहिये । पिता का सुख भी उच्चतम कोटि का होना चाहिये और उत्कृष्टता की उज्ज्वलतम सुन्दर सुखद भावनाएँ लिये हुये आत्मा को जन साधारण से सम्पर्क करना चाहिये तथा उसे सूर्य जैसा प्रताप प्रदर्शित करना चाहिये।
सूर्य के साथ वुध का योग है । वुध नवम् स्थान का स्वामी है और छटवें स्थान का भी स्वामी है। सूर्य अष्टम् स्थान का स्वामी है । अष्टमेश और नवमेश का योग यदि किसी जातक की जन्मकुडली मे होता है तो राज्य भग का योग होता है तथा उच्च के ग्रह को यदि दो क्रूर ग्रह देखते हो तो भी राज्य भग का योग होता है। __सुख स्थान मे, मातृ स्थान मे तथा भूमि स्थान मे सव प्रकार के सुखो से वचित कराने का विचार सूर्य ने किया। आत्मा को वुध ने याज्ञिक कर्म (आत्म-साधन) मे प्रवृत करने का अपना विचार बनाया, चूकि बुध चन्द्र लग्नाधिपति है, इस कारण मन में आत्म-साधन करने का अपना विचार निश्चय पूर्वक दृढ किया।
बुध बुद्धि ज्ञाता है, वाणी का कर्ता है। वाणी एव बुद्धि वल द्वारा जन साधारण से सम्पर्क स्थापित कर उसके मन मे भी याज्ञिक कर्म कराने की भावनायें बुध ने जागृत कर दी। सूर्य और बुध मेष राशि (अग्नि राशि) मे है। चतुर्थ स्थान (अग्नि राशि) मे सूर्य कह रहा है कि मैं सव सुखो को तप की तेज अग्नि में जला कर भस्म कर दूंगा और आत्मन् को इतना प्रतापवन्त कर दूंगा कि वह सौटची कुदन वन जावेगा।
बुध कह रहा है कि मैं जातक को भाग्य पर भरोसा न