________________
: ४६
सर्वदा के लिये समाप्त कर मोक्ष रूपी नवल वधू से नाता जोडा। गरु की सत्कृपा से और ग्रहो के योगायोग से भगवान महावीर को इस प्रकार की यश कीति उपलब्ध हुई जो आज तक न भुलाई जा सकी है और न युग युगान्तरो तक भुलाई जा सकेगी।
मगल ग्रह मे महान हठवादिता का गुण होता है। वलात् शासन कराना चाहता है। मगल की दृष्टि जनता और उसके मन पर पूर्णरूपेण है। ऐसे मनुष्य को बलपूर्वक राज्य करते हुए जनता और उसके मन पर राज्य करना चाहिये था परन्तु ऐसा नही हुआ । भगवान् महावीर ने जनता और उसके मन पर प्रेम पूर्वक सद्भावनाओ की छाप अकित की, जिसमे बल का प्रयोग किंचित भी नही किया गया। यह कृपा भी गुरु की है। जिस भाव को राहु और व्ययेश (गुरु) देखते हो मनुष्य उस भाव से उदास और पृथक रहते है। यहाँ राहु और गुरु दोनो लग्न (शरीर) देख रहे है इसलिये भगवान् महावीर ने शारीरिक नश्वर सुखो को अति तुच्छ समझा और शरीर को तपस्या की भेंट कर दिया तथा झूठे आडम्वरो और झूठी मान प्रतिष्ठा को छोड कर सत्यता की खोज करने तथा आत्मा को निर्विकारी वनाकर सदा के लिये अमरत्व प्रदान करने हेतु शरीर को सही मार्ग पर चलने के लिए बाध्य कर दिया।
मकर लग्न चर लग्न है, पृथ्वी तत्त्व है अतएव भगवान् महावीर ने अपना निवास स्थान स्थिर रूप से एक जगह नही किया। भूमि पर ही शयन किया। ___चतुर्थ स्थान मे सूर्य मेष राशि के अन्तर्गत उच्चता को प्राप्त है। सूर्य आत्मा है, सूर्य प्रखर ज्योति स्वरूप है, सूर्य पिता कारक है, सूर्य अश्व का स्वामी है । नभ-मडल मे सूर्य के समक्ष समस्त ग्रह विलीन हो जाते हैं । चतुर्थ स्थान से माता का, जनता का, स्वय के सुख का तथा भूमि का विचार किया जाता है। सूर्य