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जिनका विमल स्फटिक मणि तुल्य पारदर्शी मानवत्व
शुभ अर्हत्व मे परिणत होकर आलौकिक आदर्श की चरम-सीमा का
ऐसा सच्चिदानन्द घन ध्रुव केन्द्रविन्दु
वन गया जिसका माप तीनों कालो और तीनो लोकों की
वहद परिधियो से नही
वल्कि मात्र आत्म केन्द्रता से ही सम्भव है
उन परम ज्योति अरिहत प्रभु
श्री वीरनाथ के
चरणो मे हमारा कोटि कोटि नमन परम-पुनीत पच्चीस वे शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि
___ अर्पयिता --
तिलोकचन्द पाटनी प्रचारमन्त्री मनीपुर प्रातीय दि० भ० महावीर २५०० सौ वा
निर्वाण महोत्सव समिति इम्फाल (मनीपुर)