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तारा हम खाली आकाश को भी थोड़ी देर तक बैठ कर देखते रहें, तो खाली
आकाश आपको खाली कर देगा। अगर आप फूलों के पास बैठ कर फूलों
__को थोड़ी देर देखते रहें, तो थोड़ी देर में फूलों की गंध और फूलों की बास आपके भीतर भर जाएगी। और अगर आप सूरज को थोड़ी देर तक बैठ कर देखते रहें, तो आप पाएंगे, सूरज का प्रकाश आपके भीतर भी प्रविष्ट हो गया है। और अगर आप सागर की लहरों के पास बैठ कर उन्हें बहुत देर तक अनुभव करते रहें, तो आप पाएंगे, सागर आपके भीतर लहरें लेने लगा है।
ऐसे ही जब कोई परम पुरुषों की स्मृति में डूबता है, ऐसे ही जब कोई परम पावन प्रतीक पुरुषों के स्मरण से भरता है, तो उसके भीतर कुछ परिवर्तित होने लगता है, कुछ बदलने लगता है, कुछ नई बात का उसके भीतर प्रारंभ हो जाता है। तो मैं इस आशा में महावीर पर थोड़ी सी चर्चा करूंगा कि इस थोड़ी सी देर के सान्निध्य में, इस थोड़ी सी देर के उनके स्मरण में, आपके भीतर कोई परिवर्तन प्रभावित हो, आपके भीतर कोई आंदोलन उठे, आपके भीतर कोई आकांक्षा सजग हो जाए, आपके भीतर कोई बीज अंकुरित होने लगे और आपके भीतर नये जीवन को, वास्तविक जीवन को पाने की आकांक्षा उत्पन्न हो जाए।
यह हो सकता है। यह प्रत्येक मनुष्य के लिए संभव है। प्रत्येक मनुष्य अपने भीतर उन्हीं संभावनाओं को लिए हुए है, जो महावीर में हम परिपूर्णता पर पहुंचा हुआ अनुभव करते हैं। जो महावीर के लिए विकसित हो गया है, वह हमारे भीतर बीज की भांति मौजूद है।
इसलिए कोई अपने दुर्भाग्य को न कोसे और कोई यह न समझे कि हम असमर्थ हैं उतनी ऊंचाइयों में उठने में। और कोई यह न सोचे कि हमारा काम एक है कि हम महावीर की पूजा करें। महावीर की पूजा करना किसी का भी काम नहीं है। काम तो यह है कि हर एक महावीर बनने की तरफ विकसित हो। और महावीर की पूजा भी अगर सार्थक है तो इसी अर्थों में कि हम क्रमशः उस पूजा के माध्यम से भी महावीर की तरफ, महावीर की भांति ऊंचे उठने में समर्थ हो जाएं।
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