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हैं। जिनको मेरा कपड़ा छू रहा है और जो घबड़ाए हुए हैं कि पुरुष का कपड़ा छू रहा है, इनसे ज्यादा भौतिकवादी, इनसे ज्यादा देहवादी और कौन होगा?
___ एक साधु वह है, जो कहता है तुम तलवारें मेरे भीतर डालो तो हम खड़े होकर देखेंगे! उसे शरीर भी स्वयं का हिस्सा नहीं है। इन्हें कपड़ा भी स्वयं का हिस्सा है! तो दुनिया में ऐसे गृहस्थ हैं, जो आध्यात्मिक हो सकते हैं; और ऐसे साधु हैं, जो एकदम भौतिकवादी, एकदम शरीरवादी होते हैं।
महावीर की अंतर्दृष्टि यह है कि आपकी चेतना आपके शरीर से मुक्त हो जाए। लेकिन उनके पीछे चलने वाले लाखों साधु शरीर से इतने ज्यादा बंधे हुए हैं कि वे शरीर से मुक्त कैसे होंगे? महावीर की दृष्टि यह है कि आपकी अंतस-चेतना में यह पता चल जाए कि देह बाहर की खोल है, वस्त्र की भांति है, जिसे हमने पहना है; जिसे हमने पहना है, और हम चाहें तो उसी क्षण उतार सकते हैं। हमारी वासनाओं को जरूरत है कि हम उसे पहनें। जिस दिन हमारी वासनाएं क्षीण हो जाएंगी, हमें कोई जरूरत न होगी कि हम उसे पहनें।
___ शरीर वस्त्र की भांति है, जो हम अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए पहनते हैं। बारबार पहनते हैं, बार-बार छोड़ देते हैं। लेकिन जो पहनता है इस शरीर को, वह शरीर से अलग है। जो जन्म के समय इस शरीर में प्रविष्ट होता है, वह शरीर से अलग है। और जो मृत्यु के समय इस शरीर को छोड़ता है, वह शरीर से अलग है। और जो जीवन भर इस शरीर में रहता है, वह शरीर से अलग है।
__ जिस दिन ऐसा बोध होने लगे कि मैं जिस घर में रह रहा हूं, वह घर मैं ही हूं, उस आदमी के दुख का क्या हिसाब होगा! जब छप्पर उसका टूटेगा, वह चिल्लाने लगेगा कि मैं टूटा। जब उसके मकान की दीवाल का पलस्तर गिरने लगेगा, तो वह कहेगा, मैं मरा, मेरा पलस्तर गिरा जा रहा है। अगर उसके मकान को आग लग जाए, तो वह चिल्लाएगा कि मैं जल गया। लेकिन जो जानते हैं, वे उससे कहेंगे कि पागल! न तुम जल रहे हो, न तुम टूट रहे हो; तुम केवल इस मकान में रहने वाले हो। जो हो रहा है, मकान पर हो रहा है, तुम पर कुछ भी नहीं हो रहा है। जो भी इस जगत में घटना घट रही है, सब मकान पर घट रही है, मकान के भीतर वाले पर कोई घटना नहीं घट रही है। आज तक यह असंभव हुआ है कि वह भीतर जो बैठा है, उस पर कुछ भी घटा हो। सब जो बाहर घिरा है, उस पर घटा है। और दुख का कारण यह है कि हम समझ रहे हैं कि वह हम पर घट रहा है!
जीवन में कुछ भी नहीं है जो आत्मा पर घटित हो सके। जो भी घट रहा है शरीर पर घट रहा है। इस जगत की कोई शक्ति आत्मा को नहीं छूती है, न छू सकती है। जो भी छूता है, शरीर को छूता है। लेकिन एक भ्रांति कि मैं शरीर हूं, पीड़ा और दुख का कारण बन जाती है।
महावीर के धर्म की मूल शिक्षा एक बात में है कि व्यक्ति यह जाने कि वह शरीर नहीं है। इसे जानने का उनका जो मार्ग है, वही तपश्चर्या है। महावीर कहते हैं, प्रति घड़ी-दुख में, सुख में, पीड़ा में, अपीड़ा में निरंतर यह जानो कि तुम शरीर नहीं हो। उठते-बैठते, सोतेजागते तुम यह जानो कि शरीर नहीं हो। भोजन करते, उपवास करते, कपड़ा पहनते या नग्न होते जानो कि तुम शरीर नहीं हो।
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