Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 183
________________ जीवन को व्यवस्था देने से अहिंसा पैदा नहीं होती। चित्त के रूपांतरण से अहिंसा पैदा होती है। और यह रूपांतरण कैसे आए, इसे समझने के लिए दो-तीन बातें समझनी उपयोगी होंगी। पहला तो यह शब्द 'अहिंसा' बहुत अदभुत है। यह शब्द बिलकुल नकारात्मक है। महावीर प्रेम शब्द का भी प्रयोग कर सकते थे, नहीं किया। जीसस तो प्रेम शब्द का प्रयोग करते हैं। शायद प्रेम शब्द का प्रयोग करने के कारण ही जीसस जल्दी समझ में आते हैं बजाय महावीर के। महावीर निषेधात्मक शब्द का प्रयोग करते हैं। अहिंसा में वे कहना चाहते हैं : 'हिंसा नहीं है।' वे और कुछ भी नहीं कहना चाहते। हिंसा न हो जाए तो जो शेष रह जाएगा, वह अहिंसा होगी। अहिंसा को लाने का सवाल ही नहीं है। वह उस शब्द में ही छिपा है। अहिंसा को विधायक रूप से लाने का कोई सवाल ही नहीं है, कोई उपाय ही नहीं है। इसे और एक तरह से देखना जरूरी है। हिंसा और अहिंसा विरोधी नहीं हैं, प्रकाश और अंधकार विरोधी नहीं हैं। अगर प्रकाश और अंधकार विरोधी हों तो हम अंधकार को लाकर दीये के ऊपर डाल सकते हैं; दीये को बुझना पड़ेगा। नहीं, अंधकार विरोधी नहीं है प्रकाश का, अंधकार अभाव है प्रकाश का। अभाव और विरोध में कुछ फर्क है। विरोधी का अस्तित्व होता है, अभाव का अस्तित्व नहीं होता। अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं होता, प्रकाश का अस्तित्व है। अगर अंधेरे के साथ कुछ करना हो तो सीधा अंधेरे के साथ कुछ नहीं किया जा सकता। न तो अंधेरा लाया जा सकता है, न निकाला जा सकता है। नहीं तो दुश्मन के घर में हम अंधेरा फेंक आएं। कुछ भी करना हो अंधेरे के साथ तो प्रकाश के साथ करना पड़ेगा। अंधेरा लाना हो तो प्रकाश बझाना पड़ेगा। अंधेरा हटाना हो तो प्रकाश जलाना पड़ेगा। इसलिए जब यहां अंधेरा मिटता है तो प्रकाश हो जाता है। हम कहते हैं, अंधेरा मिट गया, इससे ऐसा लगता है जैसे अंधेरा था। लेकिन अंधेरा है सिर्फ प्रकाश का अभाव। प्रकाश आ गया-इतना सार्थक है। और प्रकाश आ गया तो अंधेरा कैसे रह सकता है? वह अब नहीं है। न वह कभी था। महावीर निषेधात्मक अहिंसा शब्द का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं कि हिंसा है, हिंसा में हम खड़े हुए हैं। हिंसा न हो जाए तो जो शेष रह जाएगा उसका नाम अहिंसा है। लेकिन अगर किसी ने अहिंसा को विधायक बनाया तो वह हिंसक रहते हुए अहिंसा साधने की कोशिश करेगा। हिंसक रहेगा और अहिंसा साधेगा। हिंसक के द्वारा अहिंसा कभी नहीं साधी जा सकती। और अगर साध भी लेगा तो उसकी अहिंसा में हिंसा के सब तत्व मौजूद रहेंगे। वह अहिंसा से भी सताने का काम शुरू कर देगा। इसलिए मैं गांधी जी की अहिंसा को अहिंसा नहीं मानता हूं। गांधी जी की अहिंसा उस अर्थ में अहिंसा नहीं है जिस अर्थ में महावीर की अहिंसा है। गांधी जी की अहिंसा में भी दूसरे को दबाने, दूसरे को बदलने, दूसरे को भिन्न करने का आग्रह है। उसमें हिंसा है। अगर हम ठीक से कहें तो गांधी जी की अहिंसा अहिंसात्मक हिंसा है। ___मैं आपकी छाती पर छुरी लेकर खड़ा हो जाऊं और कहूं कि जो मैं कहता हूं वह ठीक है, आप उसे मानें, तो यह हिंसा है। और मैं अपनी छाती पर छुरी लेकर खड़ा हो जाऊं और कहूं कि जो ठीक है वह मानें नहीं तो मैं छुरी मार लूंगा, यह अहिंसा कैसे हो जाएगी? 176

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