Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 196
________________ प्रश्न आपने पूछे हैं उनका समाधान मैं करूंगा तो नहीं होगा। समाधान आप खोजेंगे तो मिल जाएगा। मैं कोशिश कर सकता हूं। पहली बात आप पूछते हैं कि आज के समाज के साथ अहिंसा का क्या संबंध है? समाजका अहिंसा से कभी संबंध नहीं था । समाज तो हिंसक है और हिंसा पर ही खड़ा है। अहिंसा का संबंध व्यक्तियों से है। अभी वह दिन दूर है जब कि सभी व्यक्ति अहिंसक हो जाएंगे और जो समाज होगा वह अहिंसक होगा। समाज का संबंध अभी अहिंसा से नहीं है, अब तक कभी था। आगे संभावना है। कभी होगा, यह पक्का नहीं कहा जा सकता । व्यक्ति अहिंसा को उपलब्ध हो सकते हैं। न लेकिन अगर व्यक्ति अहिंसा को उपलब्ध होते चले जाएं तो समाज उनसे निर्मित होगा, वह धीरे-धीरे अहिंसक होता चला जाएगा। अभी तक अहिंसक व्यक्ति पैदा हुए हैं, अहिंसक समाज पैदा नहीं हुआ है। महावीर अहिंसक होंगे, जैन थोड़े ही अहिंसक हैं ! बुद्ध अहिंसक होंगे, बौद्ध थोड़े ही अहिंसक हैं ! अहिंसक व्यक्ति पैदा हुए हैं अब तक, अहिंसक समाज नहीं पैदा हुआ। व्यक्ति बढ़ते चले जाएंगे और किसी दिन अहिंसक व्यक्तियों का पलड़ा भारी हो जाएगा। अहिंसक व्यक्तियों से एक अहिंसक समाज की संभावना भी प्रकट होगी। अभी कोई आशा नहीं है जल्दी | दूसरी बात आप पूछते हैं कि ढाई हजार साल पहले महावीर ने अहिंसा की जो बात कही उसका आज क्या मतलब हो सकता है ? कहां बैलगाड़ी का जमाना और कहां जेट का जमाना ! कहां महावीर को बिहार के बाहर जाना मुश्किल और कहां आदमी का चांद पर चला जाना! बिलकुल ठीक पूछते हैं आप। लेकिन इस बात का खयाल नहीं है कि कुछ चीजें हैं जो न बैलगाड़ी पर यात्रा करती हैं और न जेट पर। कुछ चीजें हैं जिनका जेट से और बैलगाड़ी से कोई संबंध नहीं है। अंतर्यात्रा के लिए न तो बैलगाड़ी की जरूरत है और न जेट की। अगर अंतर्यात्रा बैलगाड़ी की जरूरत होती तो महावीर की बात गलत हो जाती। अंतर्यात्रा तो आज भी वैसी ही होगी जैसी ढाई हजार साल पहले होती थी और करोड़ वर्ष बाद भी जब कोई भीतर जाएगा तो वही विधि है बाहर को छोड़ने की और भीतर जाने की । भीतर जाने में कभी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला | और जो भीतर है उसमें भी समय से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह समय के बाहर है। वह कालातीत है। इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। धर्म इसी अर्थ में सनातन है। धर्म का अनुभव सनातन है, सामयिक नहीं है। उसका काल से कोई संबंध नहीं है । जब भी कोई व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होगा, वह उसी सत्य को उपलब्ध होगा जिस सत्य को कभी कोई उपलब्ध हुआ या कोई कभी उपलब्ध होगा। दो सत्य नहीं हैं। सत्य न नया है, न पुराना है। सत्य चिरंतन है, वही है । उसे पाने के लिए हमारा मन बड़े अधैर्य में है। हम चाहते हैं कोई सस्ती तरकीब, कोई ऐसी तरकीब कि एक गोली खा लें और आत्मज्ञान उपलब्ध हो जाए। कोई ऐसी तरकीब कि एक बटन दबाएं और आत्मा उपलब्ध हो जाए। हम इस फिराक में हैं। क्योंकि असल में शायद हमें आत्मा को उपलब्ध करने की कोई अभीप्सा ही नहीं है। सारी दुनिया में आदमी चाहता है कि सब कुछ अभी बन जाए, एकदम अभी हो जाए। 189

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