Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 198
________________ महावीर की, बुद्ध की या कृष्ण की वाणी नैतिक नहीं है, अतिनैतिक है। और इसलिए जब पश्चिम में पहली बार भारतीय ग्रंथों का अनुवाद शुरू हुआ तो पश्चिम के विचारकों को तकलीफ मालूम पड़ी कि इनमें नीति का तो कोई उपदेश ही नहीं है! उपनिषदों के पूरे अनुवाद हो गए, लेकिन उन्हें मालूम हुआ कि कहीं कोई नीति का उपदेश ही नहीं है! ऐसा होना ही चाहिए। धर्म तो नीति से बहुत ऊपर की बात है। संत सज्जन से बहुत भिन्न बात है। सज्जन थोपा हुआ दुर्जन है। भीतर मौजूद है दुर्जनता। ऊपर सज्जनता है। संत वह है जिसके सज्जन-दुर्जन दोनों विदा हो गए हैं। वहां कोई भी नहीं है। न नीति है, न अनीति है। वहां सब शांति है। प्रश्न : ओशो, आपने कहा कि बाह्य आचरण से सब हिंसक हैं। इसके साथ-साथ आपने कहा कि चूंकि रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद मांस खाते थे, इसलिए वे अहिंसक नहीं थे। साथ ही साथ आपने कहा कि बुद्ध और महावीर अहिंसक थे। बुद्ध तो मांस खाते थे, वे अहिंसक कैसे थे? ___ यह बात आपने अच्छी पूछी। मेरा मानना है कि आचरण से अहिंसा उपलब्ध नहीं होती। मैंने यह नहीं कहा कि अहिंसा से आचरण उपलब्ध नहीं होता। इसके फर्क को समझ लीजिए आप। हो सकता है कि मैं मछली न खाऊं। लेकिन इससे मैं महावीर नहीं हो जाऊंगा। लेकिन यह असंभव है कि मैं महावीर हो जाऊं और मछली खाऊं। इस फर्क को आप समझ लें। आचरण को साध कर कोई अहिंसक नहीं हो सकता, लेकिन अहिंसक हो जाए तो आचरण में अनिवार्य रूपांतरण होगा। __ दूसरी बात यह कि मैंने बुद्ध और महावीर को अहिंसक कहा, लेकिन बुद्ध मांस खाते थे। बुद्ध मरे हुए जानवर का मांस खाते थे। उसमें कोई भी हिंसा नहीं है। लेकिन महावीर ने उसे वर्जित किया किसी संभावना के कारण। जैसा कि आज जापान में है। सब होटलों के, दुकानों के ऊपर तख्ती लगी हुई है कि यहां मरे हुए जानवर का मांस मिलता है। अब इतने मरे हुए जानवर कहां से मिल जाते हैं, यह सोचने जैसा है। बुद्ध चूक गए, बुद्ध से भूल हो गई। हालांकि मरे हुए जानवर का मांस खाने में हिंसा नहीं है, क्योंकि हिंसा का मतलब है कि मार कर खाना। मारा नहीं है तो हिंसा नहीं है। लेकिन यह कैसे तय होगा कि लोग फिर मरे हुए जानवर के नाम पर मार कर नहीं खाने लगेंगे। इसलिए बुद्ध से चूक हो गई है और उसका फल पूरा एशिया भोग रहा है। ___ बुद्ध की बात तो बिलकुल ठीक है, लेकिन बात के ठीक होने से कुछ नहीं होता; किन लोगों से कह रहे हैं, यह भी सोचना जरूरी है। महावीर की समझ में भी आ सकती है यह बात कि मरे हए जानवर का मांस खाने में क्या कठिनाई है। जब मर ही गया तो हिंसा का कोई सवाल नहीं है। लेकिन जिन लोगों के बीच हम यह बात कह रहे हैं, वे कल पीछे के दरवाजे से मार कर खाने लगेंगे। वे सब सज्जन लोग हैं, वे सब नैतिक लोग हैं, बड़े खतरनाक लोग हैं। वे रास्ता कोई न कोई निकाल ही लेंगे, वे पीछे का कोई दरवाजा खोल ही लेंगे। 191

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