Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 197
________________ लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं, कुछ बातें ऐसी हैं, जो अभी अगर करना चाहेंगे तो कभी न होंगी, क्योंकि अभी करने वाला चित्त इतना तनावग्रस्त होता है कि अभी नहीं कर सकता । एक छोटी सी कहानी समझाऊं । कोरिया में भिक्षुओं की एक कहानी है। एक वृद्ध भिक्षु ने अपने जवान भिक्षु के साथ एक नदी को पार किया है। नाव से उतरे हैं, दोनों के ऊपर ग्रंथों का बोझ है, जैसा भिक्षुओं के ऊपर होता है । बोझ को लेकर उतरे हैं, जल्दी से केवट से पूछा है कि गांव कितनी दूर है, क्योंकि हमने सुना है कि सूरज ढलने पर गांव के दरवाजे बंद हो जाते हैं। सूरज ढलने के करीब है। हम पहुंच पाएंगे या नहीं ! रात तो न हो जाएगी! जंगल है, अंधेरा है, खतरा है। केवट ने नाव को बांधते हुए धीरज से कहा कि अगर धीरे-धीरे गए तो पहुंच भी सकते हो। लेकिन अगर जल्दी गए तो कोई पक्का नहीं है। उन दोनों ने जब यह बात सुनी तो कहा कि यह तो पागल आदमी है, इसकी बातों में पड़ना तो झंझट का काम है, भागो। क्योंकि यह कह रहा है कि धीरे-धीरे गए तो पहुंच भी सकते हो, जल्दी गए तो कोई पक्का नहीं है । इस आदमी से क्या पूछना ! दोनों भागे । सूरज ढलने लगा है और वे भाग रहे हैं। अंधेरा होने लगा है, अंधेरा रास्ता है, पहाड़ी रास्ता है, अनजान है। बूढ़ा आदमी जो है, वह गिर पड़ा है, घुटने टूट गए हैं। वह केवट नाव बांध कर पीछे आया है और कह रहा है कि मैंने कहा था, मेरा बहुत बार का अनुभव है, जो धीरे गए हैं वे पहुंच गए हैं, जो जल्दी गए हैं वे जल्दी के कारण नहीं पहुंच पाए हैं। एक चित्त की अवस्था है : जल्दी ! अभी ! यह विक्षिप्त चित्त की अवस्था है। पश्चिमी देशों में चित्त जल्दी में है, इतनी जल्दी में कि वह भीतर प्रवेश नहीं कर सकता । भीतर प्रवेश के लिए चाहिए अत्यंत शांत धैर्य । वह अभी भी हो सकता है; ऐसा भी नहीं है कि जन्मों के बाद ही होगा। अगर जन्मों के बाद की प्रतीक्षा हो तो अभी हो सकता है । और अभी करना हो तो जन्मों तक प्रतीक्षा भी करनी पड़ सकती है। आखिरी बात आपने यह पूछी है कि नैतिक अहिंसा मिथ्या अहिंसा है, सच्ची अहिंसा नहीं है। नैतिक अहिंसा के पीछे हिंसा मौजूद रहेगी। और एक धार्मिक अहिंसा है जो अहिंसा है इस अर्थ में कि वहां से हिंसा विदा हो गई है। तो आपने कहा कि इसका मतलब तो यह हुआ कि धर्म अनैतिक है! हां, एक अर्थ में यही मतलब हुआ । अनैतिक के दो रूप हैं, एक तो नीति से नीचे और एक नीति से ऊपर। दोनों अनैतिक हैं। जो नीति से ऊपर उठते हैं वही धर्म को उपलब्ध होते हैं । नीचे भी उतरते हैं लोग । उनको हम अनैतिक कहते हैं। अनैतिक शब्द ठीक नहीं मालूम पड़ता। इसलिए कहना चाहिए अतिनैतिक । धर्म अतिनैतिक है, वह नैतिक नहीं है। पापी भी अनैतिक है, वह नीति से नीचे उतर आया, उसने खुल कर हिंसा करनी शुरू कर दी। वह पापी है। नैतिक वह है जिसने हिंसा भीतर दबा ली और अहिंसा का बाना पहन लिया। यह सज्जन है, यह नैतिक है। धार्मिक वह है जिसकी हिंसा विदा हो गई है और अहिंसा ही शेष रह गई है । यह अतिनैतिक है, यह भी अनैतिक है। यह भी नीति के पार चला गया। इसको भी नैतिक नहीं कहा जा सकता। 190

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