Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 189
________________ मैं एक संन्यासी के पास ठहरा था। वह दिन में दो-तीन बार मुझसे कहे कि मैंने लाखों रुपयों पर लात मार दी है। चलते वक्त सांझ को मैंने कहा, लात आपने कब मारी? उन्होंने कहा, कोई तीस साल हुए। तो मैंने कहा कि जाते वक्त एक बात कह जाऊं, वह लात ठीक से लग नहीं पाई। नहीं तो तीस साल तक याद रखने की क्या जरूरत है? लात लग ही नहीं पाई, बिलकुल चूक गई। लाखों रुपये मेरे पास थे, यह भी अहंकार था। लाखों रुपये मैंने छोड़े, यह भी अहंकार है। और पुराने अहंकार से यह ज्यादा सूक्ष्म, ज्यादा जटिल और ज्यादा खतरनाक है। अगर कोई परिग्रह छोड़ेगा तो त्याग को पकड़ेगा। ___मैं महावीर को त्यागी नहीं कहता हूं। महावीर ने कोई परिग्रह नहीं छोड़ा, इसलिए त्यागी का कोई सवाल नहीं है। महावीर का परिग्रह विदा हो गया है। जो शेष रह गया है वह अपरिग्रह है। कोई चोरी छोड़ेगा तो सिर्फ छोड़ा हुआ चोर होगा। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं हो सकता। भीतर चोरी जारी रहेगी। हाथ-पांव बांध लेगा, रोक लेगा अपने को छाती पर पत्थर रख कर कि चोरी नहीं करनी, लेकिन भीतर चोर होगा। कोई चोरी करने से थोड़े ही चोर होता है। लेकिन अगर कोई जागेगा और चोरी विदा हो जाएगी तो अचौर्य शेष रह जाएगा। अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह नकारात्मक हैं। क्योंकि कुछ विदा होगा तो कुछ शेष रह जाएगा। और यह बड़े मजे की बात है कि अगर हिंसा विदा हो जाए, परिग्रह विदा हो जाए, चोरी विदा हो जाए-अगर ये तीनों विदा हो जाएं तो अहिंसा, अचौर्य और अपरिग्रह की जो चित्तदशा होगी, उसमें सत्य का उदय होगा। इन तीन के विदा होने पर सत्य का अनुभव होगा। ये द्वार बन जाएंगे और सत्य दिखाई पड़ेगा। सत्य को कोई खोज नहीं सकता। हमें पता ही नहीं कि वह कहां है। हम उस स्थिति में आ जाएं जहां द्वार खुल जाए तो सत्य दिखाई पड़ेगा। सत्य होगा इन तीन के द्वार से उपलब्ध अनुभव और ब्रह्मचर्य होगा उसकी अभिव्यक्ति। वह जो सत्य मिल गया वह जीवन के सब हिस्सों में प्रकट होने लगेगा। ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म जैसी चर्या, ईश्वर जैसा आचरण। ये तीन बनेंगे द्वार और तीन में अहिंसा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि जिस आदमी की हिंसा विदा हो गई है, वह चोरी कैसे करेगा, क्योंकि चोरी करने में हिंसा है। और जिस आदमी की हिंसा विदा हो गई है, वह कैसे संग्रह करेगा, क्योंकि सब संग्रह के भीतर चोरी है। इसलिए अगर हम बाकी दो को विदा भी कर दें तो तीन बातें रह जाती हैं : अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य। अहिंसा के दो हिस्से हैं : अचौर्य, अपरिग्रह। ___ अहिंसक चित्त में सत्य का अनुभव होगा और ब्रह्मचर्य उसका आचरण होगा। लेकिन यह अहिंसा समाधि से, ध्यान से उपलब्ध होती है। आप कह सकते हैं कि बहुत से ध्यानी लोग हुए हैं जो अहिंसक नहीं हैं। जैसे रामकृष्ण जैसा व्यक्ति भी मांसाहारी है। रामकृष्ण मछली खाते हैं और विवेकानंद भी। तो विचार होता है कि रामकष्ण जैसा व्यक्ति भी अगर ध्यान को. समाधि को उपलब्ध होकर मछलियों से मुक्त नहीं होता है तो मामला क्या है? मेरी दृष्टि में महावीर का जो ध्यान है, उस ध्यान से गुजरने पर ही अहिंसा की उपलब्धि हो सकती है। वह जागने का ध्यान है। और रामकृष्ण का जो ध्यान है, वह जागने का नहीं, सो जाने का, मूर्च्छित हो जाने का ध्यान है। रामकृष्ण का ध्यान ठीक से समझा जाए तो वह सिर्फ मूर्छा है। इसलिए रामकृष्ण तीन-तीन, चार-चार दिन बेहोश पड़े रहते हैं। मुख से फेन गिर रहा 182

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