Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 191
________________ इसलिए महावीर ने परमात्मा की बात ही बंद कर दी है। क्योंकि अहिंसा का अनुभव हो जाए तो परमात्मा का अनुभव हो गया। कोई जरूरत न समझी उस बात की । अहिंसा का पूर्ण अनुभव परमात्मा का अनुभव है। हिंसा विदा हो सकती है, विदा की नहीं जा सकती। दीया जल जाए तो अंधेरा विदा हो जाता है। ध्यान जग जाए तो हिंसा विदा हो जाती है। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं। मैं कोई पंडित नहीं हूं, न होना चाहता हूं। भगवान की कृपा से उस झंझट में, भूल में पड़ने का कोई मौका नहीं आया । सौभाग्य है कि आप सब विद्वज्जनों ने शांति और प्रेम से मेरी बातें सुनीं। उसके लिए मैं बहुत अनुगृहीत हूं और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरा प्रणाम स्वीकार करें। प्रश्न : ओशो, आपने जो अहिंसा के संबंध में महात्मा गांधी और महावीर की दृष्टि को प्रस्तुत किया है, आप स्वयं हिंसक हैं या अहिंसक—अपनी सम्मति कहें। मेरे कहने का क्या फर्क पड़ेगा ! मैं तो यही कहूंगा कि मैं हिंसक हूं। क्योंकि यह कहना भी कि मैं अहिंसक हूं हिंसा हो जाएगी । तो यही समझें कि मैं हिंसक हूं। और मेरे कहने से क्या पता चलेगा कि मैं क्या हूं, क्या नहीं हूं। इसे बातचीत के बाहर छोड़ा जा सकता है सहज ही । और जितना बातचीत के बाहर छोड़ दें उतना आसान होगा। मुझे नहीं समझना है आपको, अहिंसा को समझना है। और अहिंसा को समझना हो तो 'मैं' को बिलकुल ही बाहर छोड़ देना चाहिए। न तो 'मैं' समझा जा सकता है, न समझाया जा सकेगा। क्योंकि 'मैं' तो बड़ी हिंसा हो जाएगी। अभी-अभी दोपहर में मैं कह रहा था । एक व्यक्ति ने जाकर पूछा एक झेन फकीर से कि क्या आपको ईश्वर की उपलब्धि हो गई है? तो उस फकीर ने कहा कि अगर मैं कहूं कि उपलब्धि हो गई है तो जो जानते हैं वे मुझ पर हंसेंगे, क्योंकि जिसे कभी खोया ही नहीं था उसकी उपलब्धि कैसी! अगर मैं कहूं कि मुझे उपलब्धि नहीं हुई तो तुम बिना कुछ जाने-समझे लौट जाओगे। और तब भी नुकसान होगा। इससे क्या फर्क पड़ता है कि मुझे उपलब्धि हुई है या नहीं हुई है । यह निपट मेरा मामला है। इससे क्या लेना-देना है। लेकिन अहिंसा के संबंध में मैं जो कुछ कह रहा हूं उस संबंध में कुछ पूछेंगे तो अच्छा होगा। अगर मेरे संबंध में कुछ पूछना हो तो मैं दुबारा आऊं तब फिर मैं अपने संबंध में बोलूं तो ठीक होगा। प्रश्न ः ओशो, क्या महावीर से पहले इतने ऋषि-महर्षि हुए, उन्होंने अहिंसा को नहीं समझा ? मुझे पता नहीं। ऋषि-महर्षि कहीं मिल जाएं तो उनसे पूछना चाहिए। समझा होगा, बहुत लोगों ने समझा होगा, क्योंकि महावीर कोई शुरुआत नहीं हैं जगत की और न महावीर कोई अंत हैं। बहुत लोग उस दिशा में गए होंगे। असल में जो भी कभी गया होगा वह अहिंसा से गया होगा। लेकिन शायद हमारे पास ऐतिहासिक रूप से जो निकटतम आदमी है, वह महावीर हैं, 184

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