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क्षुद्रतम मनुष्य को जिसने परमात्मा कहा; क्षुद्रतम, निम्नतम, पाप में घिरे मनुष्य के जिसने परमात्मा होने की घोषणा की - इससे बड़ा और सम्मान क्या हो सकता है ? और जिसको कहा कि स्वयं परमात्मा है व्यक्ति, उसके ऊपर कोई शास्त्र नहीं हो सकता, उसके ऊपर कोई गुरु नहीं हो सकता, उसके ऊपर कोई संप्रदाय नहीं हो सकता। ये सारे बंधन हैं । और व्यक्ति इनको छोड़ कर स्वयं में प्रविष्ट हो तो वह अपने परमात्म-तत्व को, अपनी आत्मा को जानने में समर्थ होता है।
इसलिए मैंने कहा, अगर बात शब्दों के विपरीत भी पड़ती हो, तो पड़ जाने दें।
फिर मैं यह सोचा, मुझे यह भी बताया गया कि मैं यह कहता हूं कि महावीर ने मूर्तियों का विरोध किया है, मैं यह कहता हूं कि महावीर ने मूर्तियों का विरोध किया है, और परंपरा तो मूर्तियों को पूजती है। मैंने कहा, मुझे मूर्तियों से क्या लेना-देना है, लेकिन इतना मैं कहूंगा, महावीर ने मूर्त का विरोध किया है और अमूर्त में प्रवेश का आग्रह किया है।
महावीर का आग्रह क्या है ? महावीर का आग्रह है कि जो दिखाई पड़ता है, वह मूल्यवान नहीं है। जो नहीं दिखाई पड़ता और जो पीछे छिपा है, जो अदृश्य है, जो दृश्य नहीं बनता, वह मूल्यवान है। महावीर यह कहते हैं, जिसका रूप है, उसका कोई मूल्य नहीं है; जिसका रूप नहीं है, उसका मूल्य है । यह मेरी देह दिखाई पड़ रही है, यह मेरी मूर्ति है, लेकिन यह मैं नहीं हूं। और अगर मेरी इस देह को आकर कोई पत्थर मारे, तो उसने मेरी मूर्ति को पत्थर मारे, मुझे पत्थर नहीं मारे। और अगर मेरी इस देह को कोई काट दे और टुकड़े-टुकड़े कर दे, तो उसने मेरी मूर्ति को खंडित किया, मुझे खंडित नहीं किया।
सकता,
जो दिखाई पड़ रहा है, वह मूर्ति है। जो नहीं दिखाई पड़ता, जो कभी दिखाई नहीं पड़ क्योंकि जो हमेशा देखने वाला है, जो हमेशा द्रष्टा है और दृश्य नहीं हो सकता, उस आत्मा के लिए महावीर का आग्रह है । महावीर का तो पूरा आग्रह अमूर्त के लिए है। लेकिन पागल हम हो सकते हैं कि महावीर की भी मूर्ति बना कर हम पूजें ।
महावीर की जो मूर्ति है, वह महावीर के शरीर की मूर्ति होगी, महावीर की मूर्ति कैसे हो जाएगी ? महावीर की जो मूर्ति बनाई है, वह उनकी देह की मूर्ति होगी, महावीर की मूर्ति कैसे हो जाएगी ? महावीर की कोई मूर्ति बना सकता है ? यह असंभव है और यह कभी संभव नहीं हुआ और न कभी होगा। जिसको देखा भी नहीं जा सकता जिस आत्मा को, उसकी मूर्ति क्या बनाई जा सकेगी? और महावीर का असली शरीर खंड-खंड होकर नष्ट हो गया और मिट्टी में मिल गया, तो तुम्हारी मूर्तियों को तुम कब तक सम्हाले रखोगे ?
और पागल हो, असली मूर्ति जब खंड-खंड होकर मिट्टी हो जाती है तो अगर मैं तुम्हारी मूर्तियों को कहूं कि उन्हें छोड़ दो - जो खंड-खंड हो जाता है, उसका कोई मतलब नहीं है - तो मुझ पर नाराज मत हो जाना। और यह मत समझ लेना कि महावीर के प्रति मेरी दृष्टि अश्रद्धा की है। मैं जानता हूं, अश्रद्धा आपकी है, जो महावीर को पत्थर में खोजते हों। मेरी तो श्रद्धा है, क्योंकि मैं उन्हें चिन्मय में खोजता हूं, अमृत में और अमूर्त में खोजता हूं।
फिर मैंने कहा, ठीक ही है । जो मूर्तिपूजक हैं, अगर वे यह सोचें कि हम पत्थर मारेंगे, तो ठीक ही सोचते हैं, उनकी विचार - सरणी गलत नहीं है, पत्थर से ऊपर वे सोच भी नहीं सकते हैं।
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