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है। एक बात तय है कि आपने तीन साल की उम्र गंवा दी है। कोई भी–महावीर उम्र में ज्यादा रहे हों कि बुद्ध, इससे क्या फर्क पड़ता है? और कोई पहले पैदा हुआ हो कि पीछे पैदा हुआ हो, इससे क्या फर्क पड़ता है? इससे जिंदगी को समझने में, इससे जीवन के अर्थ को खोज लेने में कौन सी बुनियादी बात प्रकट होती है? वे कभी पैदा भी न हुए हों तो कोई फर्क नहीं पड़ता। पैदा होना और न पैदा होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है-महावीर की अंतर-दशा, महावीर का अंतसजीवन, महावीर की आत्मा क्या है?
लेकिन मैं देखता हूं, जगह-जगह गुणगान हो रहे हैं, पंडित कथाएं बता रहे हैं कि कब पैदा हुए, कैसे पैदा हुए, कितने हाथी-घोड़े थे उनके घर, कितना धन था, किस तरह त्याग किया, कितना धन, कितनी कोटि धन बांट दिया! बड़े महान त्यागी थे, क्योंकि इतना धन छोड़ा। अगर इतना धन उनके पास न होता तो ये पंडित एक भी पूछने नहीं आते, क्योंकि छोड़ते क्या? अगर गरीब के घर पैदा होते महावीर तो उनका तीर्थंकर बनना कठिन था इन सारे लोगों की आंखों में, जो उनको तीर्थंकर माने हुए हैं।
आपको पता है, जैनों के चौबीस तीर्थंकर राजाओं के पुत्र हैं, एक भी गरीब का बेटा नहीं! हिंदुओं के सब भगवान के अवतार राजाओं के पुत्र हैं, एक भी गरीब का बेटा नहीं! बौद्धों के सब बुद्ध-अवतार राजाओं के पुत्र हैं, एक भी गरीब का बेटा नहीं! हिंदुस्तान में आज तक एक गरीब के लड़के को ईश्वर होने का हक नहीं मिल सका! क्यों? क्या अमीर के घर में ही पैदा होता है ईश्वर भगवान ने कोई ठेका ले रखा है अमीर के घर में पैदा होने का?
नहीं, यह बात नहीं है। भगवान तो हजार घरों में पैदा होता है, लेकिन हमारी अंधी आंखें केवल उस भगवान को पहचान पाती हैं, जो धन का त्याग करता है। धन से हम भगवान को नापते हैं। गरीब भगवान हमें दिखाई नहीं पड़ सकता। हमारी नाप-जोख धन की है। हम कहते तो धर्म की बातें हैं, और हम समझते भी यह हैं कि हम त्याग की प्रशंसा कर रहे हैं। झूठी है यह बात। महावीर की प्रशंसा करते वक्त जब कोई यह गिनती गिनाता है कि कितने सोने के रथ, कितना राज्य, कितना धन, कितने हीरे-माणिक उनके पास थे, उनको ठुकरा कर, त्याग कर गए, तो याद रखना उसकी आंखों में त्याग का कोई मूल्य नहीं है; वह जो संख्या गिना रहा है धन की, उसका मूल्य है। और चूंकि उस मूल्यवान धन को वे छोड़ कर चले गए, इसलिए उनका भी मूल्य मालूम पड़ता है। ___मैं जयपुर में था। एक मित्र ने मुझे आकर कहा कि एक बहुत बड़े मुनि हैं यहां, आप उनके दर्शन नहीं करेंगे? मैंने कहा, वे बड़े मुनि हैं, यह तुम्हें कैसे पता चला? इसके बांटबटखरे कहां हैं, इसके तौलने का तराजू कहां है कि कौन बड़ा मुनि है और कौन छोटा मुनि है? कौन मुनि है और कौन मुनि नहीं है, कैसे तुमने जाना?
उन्होंने कहा, यह भी कोई बात है पूछने की? खुद जयपुर-नरेश उनके चरण छूते हैं!
समझ गए आप, मापदंड क्या है नापने का? जयपुर-नरेश अगर पैर नहीं छूते हैं मुनि के, मुनि छोटे हो गए। तो मैंने कहा, इसमें जयपुर-नरेश बड़े सिद्ध होते हैं कि मुनि बड़े सिद्ध होते हैं? कौन बड़ा सिद्ध होता है ? इसमें जयपुर-नरेश बड़े सिद्ध होते हैं; इसमें मुनि बड़े सिद्ध नहीं होते।
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