Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 144
________________ यह ज्ञान सीक्रेट है, यह रहस्य है, तब तक उनका भी मूल्य है और आदर है। हमने कैसे महावीर की तस्वीर अपने हिसाब से बना ली है, उसकी मैं चर्चा करना चाहूंगा। अगर हमें यह खयाल आ जाए कि महावीर जैसे वे हैं, और महावीर जैसे हमने बना लिए हैं, इन दोनों में बुनियादी फर्क है, तो हमारी जिंदगी में चिंतन का और परिवर्तन का एक मौका पैदा हो सकता है। कैसी हमने तस्वीर बना ली है! और हजारों वर्षों से तस्वीर में नई-नई तस्वीरें जुड़ती चली जाती हैं। पच्चीस सौ वर्ष की यात्रा के बाद असली महावीर में और हमारे महावीर में कोई संबंध, कोई मेल-जोल नहीं रह गया। पच्चीस सौ वर्ष में इतनी प्रतिध्वनियां गूंज गईं, इतना गंगा का पानी बह गया, किनारे इतने छिल गए और बिखर गए, रेत इतनी नई आई और चली गई। और इतने लोगों ने व्याख्याएं जोड़ी, व्याख्याएं जोड़ी, व्याख्याएं जोड़ी कि अब हमारे पास एक झूठी व्याख्या के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रह गया। लेकिन वह झूठी व्याख्या हमें प्रीतिकर है, क्योंकि वह बिलकुल डेड है, मुर्दा है। वह हममें कुछ भी नहीं कर सकती। हम जैसा चाहें उसका अर्थ निकाल सकते हैं। गीता पर एक हजार टीकाएं हैं। बड़ी अजीब बात है। कृष्ण ने अर्जुन से जो कहा उसका अर्थ एक ही रहा होगा, हजार अर्थ नहीं हो सकते। कि हो सकते हैं? अगर हो सकते हों, तो कृष्ण का दिमाग खराब रहा होगा तो ही हो सकते हैं। पागलों की बात का एक अर्थ नहीं होता, हजार, पचास हजार हो सकते हैं। पागल को खुद भी पता नहीं होता कि क्या अर्थ है। लेकिन कृष्ण पागल नहीं हैं। फिर ये एक हजार गीता की टीकाएं कैसे खड़ी हो गईं? ये एक हजार अर्थ करने वाले लोग कौन हैं? ये क्यों अर्थ किए जा रहे हैं? यह हर वर्ष, दो वर्ष के बाद फिर कृष्ण की तस्वीर को हमें अपने अनुकूल बनाना पड़ता है। फिर नई व्याख्या करनी पड़ती है।। शंकर व्याख्या करते हैं, वह व्याख्या कृष्ण का अर्थ नहीं है, शंकर का आरोपण है। शंकर को जो सिद्ध करना है वह कृष्ण पर थोपते हैं। रामानुज व्याख्या करते हैं, वह कृष्ण का अर्थ नहीं है। रामानुज को जो कहना है, वह कृष्ण पर थोपते हैं। तिलक व्याख्या करते हैं, वह कृष्ण का अर्थ नहीं है। उनको कर्म-योग थोपना है, तो कृष्ण के ऊपर कर्म-योग थोप देते हैं। गांधी को व्याख्या करनी है, तो अदभुत बात है, गांधी को अहिंसा थोपनी है। कृष्ण युद्ध में ले जाने का आह्वान कर रहे हैं। गांधी इसके ऊपर भी अहिंसा थोप देते हैं। अभी विनोबा को भूदान थोपना है, तो उसी में से भूदान भी निकल सकता है। जिसकी जो मर्जी हो निकाला जा सकता है। लेकिन इनको किसी को भी कृष्ण से कोई मतलब नहीं है। ये कृष्ण के इमेज को निर्मित करते चले जा रहे हैं, एक नई प्रतिमा गढ़ते चले जा रहे हैं। हर कवि को अपने अनुकूल आदमी चाहिए। वह अपने अनुकूल बना लेता है। फिर पूजा जारी हो जाती है। हजार, दो हजार वर्षों में चीज इतनी दूर चली जाती है, इतनी अफवाह रह जाती है फिर कि उसका सच्चाई से कोई भी संबंध नहीं रह जाता। अंगारे और राख में जितना फर्क है, उतना ही असली महावीर में और हमारे महावीर में फर्क है। अंगारा जला देगा, राख को मजे से मुट्ठी में पकड़े हुए बैठे रहो। हालांकि राख अंगारे से ही आई है, इसलिए तृप्ति रहती है कि यह भी अंगारा ही है। लेकिन राख को मुट्ठी में पकड़ा जा सकता है। अंगारे को मुट्ठी में नहीं पकड़ा जा सकता। तो राख प्रीतिकर है, उसकी पूजा की जा सकती है। अंगारे की पूजा नहीं की जा 137

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