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महावीर का मार्ग भक्ति का मार्ग न होकर, ज्ञान का मार्ग है। उनका मार्ग भगवान के लिए प्रार्थना का न होकर, वह जो परमात्म-शक्ति प्रत्येक के भीतर प्रसुप्त है, उसे जगाने, उसे जाग्रत करने का मार्ग है।
इस सत्य को प्राथमिक रूप से मैं इसलिए कह रहा हूं कि उसे समझे बिना महावीर की परिपूर्ण, उनके व्यक्तित्व का पूरा रूप, उनका पूरा जीवन स्पष्ट नहीं होता है।
हमने उन्हें भी ईश्वर में परिणत कर दिया है। हमने उनके भी मंदिर बनाए, उनकी भी मूर्तियां बनाईं और हमने उनकी पूजा और प्रार्थना प्रारंभ कर दी है! और हम इस भ्रांति में हैं,
और अनेक लोग इस भ्रांति के समर्थक हैं, कि उनकी पूजा और प्रार्थना से, उनकी आराधना से कल्याण होगा! अनेक-अनेक लोग इस समर्थन में प्रतीत होंगे कि उनकी पूजा और प्रार्थना से कल्याण होगा! जब कि महावीर की उदघोषणा यह है कि किसी की पूजा और किसी की प्रार्थना कल्याण नहीं ला सकती है। कल्याण तो आत्म-जागरण से होगा, किसी के नाम-स्मरण से नहीं। महावीर-महावीर या अरिहंत-अरिहंत कहने से नहीं, बल्कि उस स्थिति में उतरने से, जहां सब कहना बंद हो जाता है। किसी नाम के उदघोष से नहीं, बल्कि उस चैतन्य में प्रवेश करने से, जहां सब नाम छूट जाते हैं। किसी विचार का बार-बार आवर्तन करने से नहीं, बल्कि उस निर्विचार दशा में, जहां समस्त विचार विसर्जित हो जाते हैं, वहां उसका दर्शन होगा, उसकी अनुभूति होगी, उसका जागरण होगा, जो प्रभु है।
तो महावीर को भगवान मान कर जो हम चल पड़ते हैं, उसमें महावीर की प्रतिष्ठा और सम्मान नहीं, उसमें हमारा अज्ञान और नासमझी है। उसमें उनका सम्मान नहीं, हमारा अज्ञान
और हमारी कमजोरी और हमारी असहाय, अपनी हीनता की धारणा है। प्रत्येक व्यक्ति इतना हीन अनुभव करता है कि बिना किसी के कल्याण किए मेरा कल्याण कैसे होगा! सारे जगत में, सारे लोगों में ईश्वर की जो सहायक की तरह धारणा विकसित हुई, उसके पीछे मनुष्य के मन में छिपी हुई हीनता और दुर्बलता है। हमें लगता है, हम इतने कमजोर! हम इतने हीन! हम अपने से कैसे आनंद को, मोक्ष को, ज्ञान को उपलब्ध हो सकते हैं! कोई सहारा चाहिए, कोई पथ-द्रष्टा चाहिए, कोई हाथ चाहिए जो हमें आगे बढ़ाए।
महावीर की क्रांति इसी बात में है कि वे कहते हैं कोई हाथ ऐसा नहीं है जो तुम्हें आगे बढ़ाए। और किसी काल्पनिक हाथ की प्रतीक्षा में जीवन को व्यय मत कर देना। कोई सहारा नहीं है सिवाय उसके, जो तुम्हारे भीतर है और तुम हो। कोई और सुरक्षा नहीं है, कोई और हाथ नहीं है जो तुम्हें उठा लेगा, सिवाय उस शक्ति के जो तुम्हारे भीतर है, अगर तुम उसे उठा लो। महावीर ने समस्त सहारे तोड़ दिए। महावीर ने समस्त सहारों की धारणा तोड़ दी। और व्यक्ति को पहली दफा उसकी परम गरिमा में और महिमा में स्थापित किया है। और यह मान लिया है कि व्यक्ति अपने ही भीतर इतना समर्थ है, इतना शक्तिवान है कि यदि अपनी समस्त बिखरी हुई शक्तियों को इकट्ठा करे और अपने समस्त सोए हुए चैतन्य को जगाए, तो अपनी परिपूर्ण चेतन और जागरण की अवस्था में वह स्वयं परमात्मा हो जाता है।
व्यक्ति के भीतर हीनता, असहाय अवस्था के बोध का विसर्जन महावीर को समझने का पहला चरण है। वे कोई सहारा, कोई काल्पनिक सहारा नहीं देना चाहते हैं।
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